बुधवार, 15 मई 2024

धुन

 

मेरी तन्हाइयों में यूं जो गुनगुनाओगी

द्वार हृदय अपने खुद उलझ जाओगी

 

सूर्य की किरणों सा पहुंच जाता हूँ

तपिश सा राग में घुल जाता हूँ

रागिनी चुन-चुन हो मगन सुनाओगी

द्वार हृदय अपने खुद उलझ जाओगी



कृषक की आस बन मेघ सा निहारूँ

तृषित नयनों से जलसृष्टि पुकारूं

मेघराग में आच्छादित छा जाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी

 

संभलना भावनाओं की पुकारती डगर

खंगालना शब्दों की भोली सी नज़र

कहां क्या दांव ठाँव तुम समझ पाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी

 

गीतों में ढली तुम हो एक श्रेष्ठ काव्य

प्रतीकों में अंतस रागिनियों का निभाव

मैं धुन हूँ बिना जिसके क्या गा पाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी।

 

धीरेन्द्र सिंह

15.05.2024

22.34

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