हर शब्द कहा शहद भरा छत्ता है
स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता
है
शब्द के ऊपर रहें मोटी बतियां
शब्द भीतर भावपूरित नदियां
रचना भीतर पान चटक कत्था है
स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता
है
कोई भी रचना न शब्द का पिरामिड
रचना लचीली न भाव रखे अडिग
रचनाकार अपनी धुन का सत्ता है
स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता
है
भावनाओं के जमघट में शब्द साधना
कामनाओं के पनघट में वक़्त बांधना
लेखन योगभाव टहनी उगा पत्ता है
स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता
है।
धीरेन्द्र सिंह
18.05.2024
21.00
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