एक मोटी परत धूल
छंट रही बादलों सी
मन लगा स्वतंत्र हुआ
ना जाने लगी किसकी दुआ
एक कोमल पाश रचनात्मक
पल प्रति पल सृजनात्मक
लेखनीय अर्चना को छुवा
कौन था वह हमनवां
चुन लिया पथ अलग
धूनी नई जगा अलख
कौन किससे अलग हुआ
विश्वास एक गरल हुआ
लग रहा था कैद
पर था दिल मुस्तैद
भूमिका प्रदर्शन मालपुआ
भ्रमित होकर बुर्जुआ।
धीरेन्द्र सिंह
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