करवा चौथ
सागर तट पर
भींगे रेत पर
बह जाते हैं निशान
कदमों के,
नहीं बहती यादें
वक़्त झंझावात में,
बढ़ते हैं कदम
प्रकृति की ओर बरबस
अस्तित्व नारी का पाकर
और छोड़ जाते हैं
निशां अपने कदमों का,
आंधियां नहीं उड़ाती
कदमों के निशान,
हवा संग लुढ़कते पुष्प
उड़ती पंखुड़ियां
ठहर जाती हैं कदमों पर,
प्रकृति मना लेती है
करवा चौथ।
धीरेन्द्र सिंह
13.10.2022
12.10
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