सोमवार, 9 सितंबर 2024

हर पल

 ना कभी वक़्त-बेवक्त समय को ललकारा

अवधि की कौन सोचे लगे हर पल प्यारा

 

कभी कुछ खनक उठती है जानी-पहचानी

ललक धक लपक उठती जाग जिंदगानी

किसी कहानी ने अब तक ना है पुकारा

अवधि की कौन सोचे लगे हर पल प्यारा

 

बांध कविताओं में कुछ भाव कुछ क्षणिकाएं

दोबारा फिर ना पढ़ें गति आगे बढ़ते जाए

पलटकर देखने पर समय ने है कब संवारा

अवधि की कौन सोचे लगे हर पल प्यारा

 

सहज चलने सरल ढलने का चलन स्वीकार

किसी की खुशियां सर्वस्व ना कोई अधिकार

कहां कब मुड़ सका जिसे दिल ने है नकारा

अवधि की कौन सोचे लगे हर पल प्यारा।

 

धीरेन्द्र सिंह

09.09.2024

28.25



शनिवार, 31 अगस्त 2024

एडमिन

 समूह के नाम सहित दूसरे समूह धमाल

यह लोग कौन हैं जिनका कर्म है रुमाल


एक समूह लिखें दूजे समूह नाम लहराएं

एक-दूजे को कैसे आपस में देते उलझाएं

यह कैसा लेखन समूह नाम का जंजाल

यह लोग कौन हैं जिनका कर्म है रुमाल


एक एडमिन की एक सदस्य से हुई लड़ाई

बोली मेरा भाई था दूजे नाम रोक लगाई

हिम्मत हुई कैसे समूह मेरा कहूँ ठोक ताल

यह कौन लोग हैं जिनका कर्म है रुमाल


यह मस्तमिजाजी है या तुनकमिजाजी कहें

एडमिन से पूछा बोली निकाला क्या कहें

करती थी मुक्त प्रशंसा कर दी वही बेहाल

यह कौन लोग हैं जिनका कर्म है रुमाल।


धीरेन्द्र सिंह

31.08.2024

23.24


प्रेम

 चलो दिल बस्तियों में हम समा जाएं

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


तृषित जो कामना ना होती मिलते क्यों

नियॉन रोशनी में दिए सा जलते क्यों

लौ हमारी समझ तुम्हारी लपक जाए

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


एक नियमावली के तहत हृदय काम करे

प्यार की रंगीनियां हों देह बात पार्श्व धरे

उन्मुक्त बोलने पर पाबंदियाँ न लगाओ

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


“ओ हेलो” बोलना भी तो बदतमीजी है

कड़वे शब्द बोलो क्या यही आशिकी है

प्रणय कह रहा है प्रतिक्षण न बुद्बुदाएँ

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

31.08.2024

13.43



गुरुवार, 29 अगस्त 2024

रचनाकार

 नित नई रचनाएं

भावनाओं की तुरपाई

कुशलता है, अभ्यास है

निज कौशल है,

जरूरी नहीं कि रचनाकार

बौद्धिक है;


एक मुखौटा डालकर

एक चांदनी तानकर

रचनाओं की करें बुआई

संभावनाओं की जुताई

क्या कुछ दिखता नैतिक है?

जरूरी नहीं कि रचनाकार

बौद्धिक है;


बहुत हैं क्षद्मवेशी

सर्जना के निवेशी

देकर कोई पुराना चर्चित नाम

चाहते बनाना सर्जन धाम,

अपना नाम मुखपृष्ठ दिए

अंदर पृष्ठ विभिन्न रचनाएं

कहते सब लौकिक है,

जरूरी नहीं कि रचनाकार

बौद्धिक है।


धीरेन्द्र सिंह

30.08.2024

05.34

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

बूंदे

 बूंदों ने शुरू की जब अपनी बोलियां

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

सड़कों पर झूमता था उत्सवी नर्तन

हवाएं भी संग सक्रिय गति परिवर्तन

बदलियों का उत्पात मौसम बहेलिया

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

सरपट भाग रहीं, दौड़ रहीं लक्ष्य कहीं

पहाड़ियां गंभीर होकर कहें ताक यहीं

थीं सड़कें खाली हवा-बूदों की सरगर्मियां

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

प्रकृति का यह रूप जैसे भव्य समारोह

बूंदें आतुर दौड़ें असहनीय विछोह मोह

सब सिखाती प्रकृति जीवन के दर्मियाँ

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां।

 

धीरेन्द्र सिंह

28.08.2024

08.14


भवितव्य

 नेह का भी सत्य, देह का भी कथ्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


शिखर पर आसीन दूरदर्शिता भ्रमित

तत्व का आखेट न्यायप्रियता शमित

चांदी के वर्क के नित नए वक्तव्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


इस तरफ उस तरफ योजनाबद्ध शोर

कोई चाहे दे पटखनी कोई कहे सिरमौर

इन द्वंदों में लोग भूल गए गंतव्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


गुटबंदियाँ चाय पान की सजी दुकान

चौहद्दियाँ हों विस्तृत लगाते अनुमान

महत्व विकास गौण, निज लाभ घनत्व

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य।


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2024

20.05




सोमवार, 26 अगस्त 2024

कामनाएं

 उम्र की बदहवासी

सारी उम्र सताए खासी

मन गौरैया की तरह

रहता है फुदकता

कभी डाल पर

कभी मुंडेर पर;


मिटाती जाती है

वह पंक्तियां जिसे

लिखा था मनोयोग से

कामनाओं ने 

भावनाओं ने, रचनाओं ने

उड़ जाती है गौरैया;


कब खुला है आसमान

कब खुली है धरती

कब खुला इंसान

होती हैं बातें खुलने की

मनचाहे आसमान उड़ने की

गौरैया उड़ती तो है पर

लौट आती है 

अपने घोंसले में;


संभावनाओं को डोर पर

कामनाओं की बूंदे

थमी हुई

करती रहती हैं प्रतीक्षा

गौरैया की।


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2024

06.49