चलो दिल बस्तियों में हम समा जाएं
प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं
तृषित जो कामना ना होती मिलते क्यों
नियॉन रोशनी में दिए सा जलते क्यों
लौ हमारी समझ तुम्हारी लपक जाए
प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं
एक नियमावली के तहत हृदय काम करे
प्यार की रंगीनियां हों देह बात पार्श्व धरे
उन्मुक्त बोलने पर पाबंदियाँ न लगाओ
प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं
“ओ हेलो” बोलना भी तो बदतमीजी है
कड़वे शब्द बोलो क्या यही आशिकी है
प्रणय कह रहा है प्रतिक्षण न बुद्बुदाएँ
प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं।
धीरेन्द्र सिंह
31.08.2024
13.43
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