सोमवार, 10 जून 2024

आसक्तियां

 प्यार से जरूरी है प्यार की अभिव्यक्तियां

बहुत जरूरी हैं जतलाएं गहन आसक्तियां


मंद मुस्कराहट अधर या कातिल अँखिया

मृदु छुवन स्पर्श कहें तन्मय हो बतियाँ

कोई समझे कोई कयास लगाए युक्तियां

बहुत जरूरी हैं जतलाएं गहन आसक्तियां


भौतिकता की आंधी में लुकी-छिपी संवेदना

तार्किकता की कसौटी पर मुड़ी-तुड़ी चेतना

व्यक्ति प्रयास करे भर जाएं मन रिक्तियां

बहुत जरूरी है जतलाएं गहन आसक्तियां


पुष्प नहीं उपहार नहीं श्रृंगार अति जरूरी

प्यार कब समझा प्यार की कोई मजबूरी

एक पतंग एक छोर उड़ान की नव सूक्तियाँ

बहुत जरूरी है जतलाएं गहन आसक्तियां।


धीरेन्द्र सिंह

10.06.2024


19.58


शुक्रवार, 7 जून 2024

दौड़ते जा रहा

 दाल उबल रही भोजन की आस है

पेट का नाम ले संभावना हताश है

यह एक क्षद्म है या स्व छलावा

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


रूठ गयी कविता बोली भाव नहीं

प्यार पर लिखते हो प्यार है कहीं

मोहब्बत में तोहमत चलन खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


कविता बोली सबकुछ है यहां संभव

जीत के निनाद में सत्य है पराभव

दौड़ते हुए पर भी नियंत्रण खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


समय, काल, भाल देख कविता तौले

सर्जन का मूल मंत्र वह हौले से बोले

प्रत्येक रचना में मुखर कोई फांस है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2024

22.51




गुरुवार, 6 जून 2024

लोक सभा 24

 धैर्य सहित प्रतीक्षा सदीक्षा की आस्था

राम मंदिर निर्माण जन-जन की आशा

भव्य निर्माण में दिव्य उपलब्धियां हैं

सरकार, न्यायालय ने रोका था तमाशा


“राम आएंगे” की थी अनुगूंज चहुंओर

असंख्य कदम अयोध्या नवपरिभाषा

“जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे”

“उनको” पूर्ण ला ना पाए, सबकी जिज्ञासा


लोक सभा चुनाव निर्णय है सुखदाई

अयोध्या परिणाम असंख्य की हताशा

कैसे एक सपाट झपट झकझोर दिए

कौन जुगत से बज ना सका वह ताशा


व्यथित हृदय कहे अयोध्यावासी बहके

हुआ चुनाव न चहके भूले रामवासा

राम आ गए धाम पा गए अयोध्यावासी

रोजी-रोटी, प्रगति-प्रसंस्करण मधुवासा।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

17.34



बुधवार, 5 जून 2024

तुम चलोगी

 प्रणय पग धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे


कहो, तुम चलोगी

संग मेरे बहोगी

सपनो को घेरे-घेरे

मन के तीरे-तीरे


आत्मिक है निमंत्रण

सुख शामिल प्रतिक्षण

उमंग मृदंग फेरे-फेरे

मन के तीरे-तीरे


व्यग्र समग्र जीवन

चतुराई से सीवन

छुपाए तागे उकेरे-उकेरे

मन के तीरे-तीरे


आओ करें मनमर्जियाँ

अनुमति की ना मर्जियाँ

नव उद्गम धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

05.16



शनिवार, 1 जून 2024

ना झूम पाए

 बहुत डूबकर भी न हम डूब पाएं

डुबकी भटकी या बुलबुले सताएं

मचलती बहुत ज़िंदगी है दुलारी

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


निगाहों के चितवन भी भ्रम फैलाएं

मुस्कराहट की लहरें तट ही दिखाएं

क्या आवधिक है जीवन आबंटित

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


हृदय कामनाएं लगें बंदर सरीखी

इस डाल से उस डाल सफर रीति

है कोई बंधन आजीवन गुनगुनाए

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


मजबूरी, विवशता या मोह आकर्षण

सब में है स्वार्थ प्रेम भी होता कृपण

प्यार धोखे में जीता हम कैसे बताएं

खुदकी ही मस्ती पर ना झूम पाएं।


धीरेन्द्र सिंह

01.06.2024

12.30



गुरुवार, 30 मई 2024

सतकर्मा

 आप जब महके चमन गए शरमा

आप जब चहके गगन गए भरमा

यूं ही हैं अनोखे आप जानते नहीं

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा

 

आपको समझूं तो उठे झूम फिजाएं

प्रकृति ले चूम इंद्रधनुष आप सजाए

एक आप अनोखी शेष नित का कर्मा

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा

 

विशिष्ट हैं घनिष्ट है प्रीति समष्टि है

जितना भी समझें गहन गूढ़ निष्ठ हैं

आपके प्रभाव में सब होते हितकर्मा

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा।

 

धीरेन्द्र सिंह

26.05.2024

21.28



सोमवार, 27 मई 2024

देह

 

राधा-कृष्ण, शिव-शक्ति की कर चर्चाएं

प्रेम का रूप गढ़ें, लक्ष्य क्या कौन बताए

यदि आध्यात्म प्यार भक्ति मार्ग जाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

ऐसे लोगों का मस्तिष्क अलौकिक चाह

देह से मुक्ति चाहें देह को ही नकार

वासना, कामना का सामना को हटाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

बहुरूपिया लेखन का बढ़ रहा है चलन

प्रेम धर्म परिभाषित सहज भाव दलन

देह मार्ग मुक्ति मार्ग सहजता से पाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

राधा-कृष्ण छोड़िए शिव-शक्ति भव्य

आत्मधन चाहें नकार कर क्यों द्रव्य

सहज जीवन देह आकर्षण सहज पाए

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं।

 


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2024

09.56Q