दाल उबल रही भोजन की आस है
पेट का नाम ले संभावना हताश है
यह एक क्षद्म है या स्व छलावा
दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है
रूठ गयी कविता बोली भाव नहीं
प्यार पर लिखते हो प्यार है कहीं
मोहब्बत में तोहमत चलन खास है
दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है
कविता बोली सबकुछ है यहां संभव
जीत के निनाद में सत्य है पराभव
दौड़ते हुए पर भी नियंत्रण खास है
दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है
समय, काल, भाल देख कविता तौले
सर्जन का मूल मंत्र वह हौले से बोले
प्रत्येक रचना में मुखर कोई फांस है
दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है।
धीरेन्द्र सिंह
07.06.2024
22.51
सुंदर सृजन
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