कविताओं को पढ़कर
दृष्टि पहुंचती है
अंतिम पंक्ति पर,
नीचे छपा रहता है
रचनाकार का फोटो,
पाठक मन ढूंढता है
काव्य भाव
प्रकाशित रचनाकार के
चेहरे पर,
पठित भावनाएं
बंजर नजर आती है,
जिज्ञासा छटपटाती है
और
कविता मर जाती है।
धीरेन्द्र सिंह
20.08.2023
15.15
कविताओं को पढ़कर
दृष्टि पहुंचती है
अंतिम पंक्ति पर,
नीचे छपा रहता है
रचनाकार का फोटो,
पाठक मन ढूंढता है
काव्य भाव
प्रकाशित रचनाकार के
चेहरे पर,
पठित भावनाएं
बंजर नजर आती है,
जिज्ञासा छटपटाती है
और
कविता मर जाती है।
धीरेन्द्र सिंह
20.08.2023
15.15
देह के द्वार पर प्यार की तलाश
युग रहा असफल हो जाएंगे हताश
एक झंकार पकड़ती हैं अनुभूतियां
भाव फ़नकार में मिलें यह रश्मियां
मुक्त गगन है नहीं, यह बाहुपाश
युग रहा असफल हो जाएंगे हताश
जीत कैसी हार कैसी और दबदबा
संघर्ष की फुहार देता इसे बज़बजा
दबंगता से कब हुआ, कोमल विन्यास
युग रहा असफल हो जाएंगे हताश
यह मुंडेर वह मुंडेर क्यों री गौरैया
प्रकृति है या प्यास,क़ उजबक खेवैया
एक ही मुंडेर पर टिकती नहीं आस
युग रहा असफल हो जाएंगे हताश
ध्यान है, सम्मान है, अभिमान है प्यार
विविधता मन में है, क्यों विविध यार
द्रवित, दमित होगा यह भ्रमित उल्लास
युग रहा असफल हो जाएंगे हताश।
धीरेन्द्र सिंह
12.08.2023
07.06
मुझसे मुझको कहने का अधिकार
छीन लिया कैसे वह, दब प्रतिकार
स्व की स्वरांजलि, नव भाव लिए
परकाया समझा था, कब स्वीकार
वातायन था मन, कलरव गुंजित
कुहुक बोल थे मिश्रित, रचि श्रृंगार
तोड़ दिए क्यों रहन सभी बन लाठी
परकाया समझा था, कब स्वीकार
रूप आकर्षण और नव देह मोह
ना बिछोह, दुःख ना, चीत्कार
चुपके से गहि मौन सिधारे
परकाया समझा था, कब स्वीकार
बदन दौड़ पर मन का ठौर यहीं
व्यक्तित्व गूंथ, अस्तित्व चौबार
बदले, जैसी हो बरसती बदरिया
परकाया समझा था, कब स्वीकार
सावन में डोले, झुलसी स्मृतियां
बोले क्या मन, क्या अब दरकार
यह छल बोलूं क्यों, कि भूल गए
परकाया समझा था, कब स्वीकार।
धीरेन्द्र सिंह
19.07.2023
19.57
मेघों की मस्तियाँ व्योम भरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
वनस्पतियों में अंकुरण का जोर है
पहाड़ियां कटें संचरण में शोर है
मेरी बालकनी देख सब भरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
सावन में प्रकृति ही है निज प्रेमिका
पावन परिवेश में गूंजे है गीत प्रेम का
हृदय तंतुओं में रागिनी यूं समा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
निज अकेला बैठ प्रकृति निहार रहा
हवाओं की मस्ती या कोई पुकार रहा
पुष्प, पत्ती में निहत्थी बूंद नरमा गयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी
हर किसी को ना आए समझ हया
हर कोई बूझे ना सावन मांगे दया
सुप्त भाव तरंगे उभर नव अरमां भयी
आया सावन कि सलोनी शरमा गयी।
धीरेन्द्र सिंह
19.07.2023
08.15
एक सुंदर एहसास सा तेरा
अपरिभाषित होने का घेरा
सिर्फ अनुभूतियों में ध्वनित
बोल न कौन तेरा है चितेरा
धरती, अम्बर, बादल, चांद
यह सब छुपने के हैं मांद
मौन स्पंदन वर्तमान का घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा
हवा, शाम, रातों की अदाएं
तू दूर तेरा ख्वाब हैं जगाए
प्रतिध्वनियों का गुंजित घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा
होना तुम्हारा क्या मेरा जीवन
दर्द विरह हृदय का सीवन
क्यों रह-रह बोले बाहों का घेरा
बोल न कौन तेरा है चितेरा।
धीरेन्द्र सिंह
12.07.2023
06.40
बादलों को पर्वतों से अनुराग है
या बताएं प्यार में तो त्याग है
तपन में जल संचयन आराधना
मनन सृष्टि वृष्टि से है थामना
बादलों का यह अनोखा राग है
या बताएं प्यार में तो त्याग हैं
जल सहेजे उड़ चलें ऊपर बहुत
हल करें पर्वत तृष्णा छूकर उत
या कहें यह मिलन की आग है
या बताएं प्यार में तो त्याग है
कोमलता में विश्व शक्ति व्याप्त
रूढ़ता हठवादिता अहं में आप्त
मन अडिगता खंडित विवाद है
या बताएं प्यार में तो त्याग है
बरसते बादलों में जीवन दर्शन
बादलों का विद्युतीय आत्म तर्पण
बादलों को मात्र सावनी निनाद है
या बताएं प्यार में तो त्याग है।
धीरेन्द्र सिंह
29.06.2023
07.52
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे वे