मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

विकल्प

 विकल्प


विकल्प होना

संभव है संकल्प में

संकल्प होना

संभव कहां अल्प में,

स्थिर मन होता है संकल्पित

या विकल्पित

अपने संस्कार अनुसार

मन का खोले द्वार,

विकल्प तलाशता है

बुनता ताना-बाना

परिचित से हो अपरिचित

अनजाने को कहे पहचाना,

संकल्प और विकल्प

जीवन के दो धार

संकल्प से हो उन्नयन

विकल्प ध्वनि बस "यार"।


धीरेन्द्र सिंह


चखे फल

 कौओं, कबूतरों, गिद्धों के

चखे फल को

अर्चना में सम्मिलित करना

एक आक्रमण का

होता है समर्थन,

श्रद्धा चाहती है

पूर्णता संग निर्मलता,

चोंच धंसे फल

सिर्फ जूठे ही नहीं होते

बल्कि

किए होते हैं संग्रहित

चोंच के प्रहारों की अनुभूति

समेटे मन के डैने में,

आस्थाएं

नहीं टिकती

जूठन व्यवहार पर

क्या करे पुजारी

मंदिर के द्वार पर।


धीरेन्द्र सिंह


सोमवार, 17 अक्टूबर 2022

"मेरा ही बनाया हवन कुंड'


हवन कुंड जलाकर

उसका रचयिता

प्रत्येक आहुति में

किए जा रहा है

अर्पित अपने गुनाह

अर्जित करता शक्ति

ईश्वर से


हवन कुंड का रचयिता

हो सम्माननीय

हमेशा आवश्यक नहीं,

धर्म की आड़ में

शिकार की ताड़

और नए शिकार से प्यार

भीतर से,


हवन कुंड का रचयिता

करता है ब्लॉक

जब पाता है नया शिकार

एक चाहत की प्यास

कहता है 

"मेरा ही बनाया हवन कुंड'

आहुति दे


भोलापन और मासूमियत

भीतर बदनीयत

स्वार्थ की हुंकार

प्यासे तन-मन की झंकार

एक पकड़े दूजा छोड़े

नातों से नव नाता जोड़े

आदमी दे।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

करवा चौथ

करवा चौथ

सागर तट पर
भींगे रेत पर
बह जाते हैं निशान
कदमों के,
नहीं बहती यादें
वक़्त झंझावात में,

बढ़ते हैं कदम
प्रकृति की ओर बरबस
अस्तित्व नारी का पाकर
और छोड़ जाते हैं
निशां अपने कदमों का,
आंधियां नहीं उड़ाती
कदमों के निशान,
हवा संग लुढ़कते पुष्प
उड़ती पंखुड़ियां
ठहर जाती हैं कदमों पर,
प्रकृति मना लेती है
करवा चौथ।

धीरेन्द्र सिंह
13.10.2022
12.10

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

अंतरंग

 आपकी गतिशीलता गति करे प्रदान

आपकी प्रगतिशीलता निर्मित करे अभिमान

आप साथी आप संगी आप ही अंतरंग हैं

आप ही गोधूलि मेरी आप ही तो बिहान


आप से निबद्ध हूं निमग्न आप में प्रिए

आप की सहनशीलता में घुला सम्मान

आप मेरे आलोचक, समीक्षक हैं शिक्षक

आपकी कुशलता संजोए संचलन कमान


हृदय ही सर्वस्व है वर्चस्व उसका ही रहे

हृदय की आलोड़ना में प्रीत का बसे गुमान

कौन उलझे सांसारिक रिश्तों की क्रम ताली में

हृदय जिसे अपनाएं प्रियतम उससे ही जहान


मानव निहित अति शक्तियां अप्रयोज्य पड़ीं

इन शक्तियों में सम्मिलित कई नव वितान

भाग्य ही भवसागर है कर्म की कई कश्तियां

कौन किसका कब बने इसका न अनुमान।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 10 सितंबर 2022

मन अधीर है

 शब्दों की गगरी में भावों के खीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


एक अधर खीर का स्वाद बेजोड़ है

मन में बसा उसका होता न तोड़ है

चाहतें चटखती चढ़ रही प्राचीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


दुनिया का जमघट अपना पनघट है

प्रीत की बयार मदहोशी तेरी लट है

जमाने के तरीकों में अपनी लकीर है

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


शब्द गगरियों की आपसी टकराहट

खीर भी मिल दिखलाती घबराहट

भावनाएं दूर कहीं अनजानी तीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 24 अगस्त 2022

पपड़ियां


पर्वतों के पत्थरों पर पड़ गयी पपड़ियां

एक मुद्दत से यहां कोई हवा न बही

व्योम में सूर्य की तपिश थी धरती फाड़

चांदनी पूर्णिमा में भी ना नभ में रही


क्या प्रकृति में भी होता षड्यंत्र कहीं

अर्चनाएं जीवन की पहाड़ी नदी बही

किस कदर जी लेती है इंसानियत भी

कल्पनाओं में चाह स्वप्न बुनती रही


अब न ढूंढो हरीतिमा पर्वत शिखरों पर

कामनाएं प्रकृति अवलम्बित उल्टी बही

एक हवा बन बवंडर सी चल रही है यहां

मगरूरियत विश्वास में राग वही धुनती रही।


धीरेन्द्र सिंह