बुधवार, 3 नवंबर 2021

दीपोत्सव मंगलमयी


पता नहीं क्यों

पता मिला कैसे

बस्तों को बांचते

पुरातत्व खंगालते

आरंभ पुनर्निर्माण

संस्कृति के वह द्वार

सभ्यता की पुकार

हिंदुत्व की हुंकार,

राम मंदिर;


सरयू भी उठी खिल

वर्ष 2021 से मिल

हिंदुत्व निर्विवाद

संस्कृति पर कैसा विवाद

असंख्य दीप जल उठे

प्रकाशित विश्व द्वार

दीपावली दिव्य प्रखर

अनुगूंज दिव्य अनंत,

राम मंदिर;


भारत में हिंदुत्व

हिन्दू हर भारतवासी

बहु धर्म का समझे मर्म

नव चेतना विन्यासी

बारह लाख दीपों में

शुभकामनाएं

आलोकित सब इससे

पूर्ण हों अर्चनाएं

अयोध्या जग जगमगाए,

राम मंदिर।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

छुवन तुम्हारी

 छुवन तुम्हारी चमत्कारी एहसास है

सूखते गले में कुछ बूंदें तो टपकाईये

प्यास लिए आस वह लम्हा लगे खास

पास और पास एक विश्वास तो बनाइये


प्यार उन्माद में कभी आप तो तुम कहूँ

बहूँ अनियंत्रित भाव लहरें ना छलकाईये

मेरी मंत्रमुग्धता सुप्तता आभासित करे

जागृत जीवंत मनन आराध्य तो बन जाईये


कोमल काया को बंधनी स्पर्श दे उत्कर्ष

सहर्ष बिन सशर्त प्रेम सप्तक तो जगाइए

मेरे शब्दों में अर्चना है प्रीत धुन लिए नई

अपने स्वरों में ढाल कभी मुझे तो गुनगुनाइये।

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

दशहरा


दशानन का शमन

वमन हुआ वह कहकहा

यही है दशहरा


विभीषण कहें या खुफिया

विशाल शक्ति ढहाढहा

यही है दशहरा


स्वयं में है रावण

या परिवेश दे रावण, भरभरा

यही है दशहरा


अपनों में भरे रावण

धनु राम का हुंकार भरा

यही है दशहरा


एक संकल्प ले शपथ

सोच से परे दांव फरफरा

यही है दशहरा


जीवित रावण बहुरूपिया

राम तीर अग्नि सुनहरा

यही है दशहरा।


धीरेन्द्र सिंह



मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

भींगे ही रहें

 प्रियतम प्यारे

आप ऐसे ही भींगे रहें


भावनाओं के वलय

बूंद बन तन-मन बहें,

अर्चनाएं सघन मन

प्रभु कृपा से कहें,

मन एकात्म यूँ डिगे रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें;


ज्ञात भी अज्ञात भी

मनभाव तथ्य यही गहें,

सर्जनाएँ प्रीत की हम

शब्दों में गहि-गहि कहें,

प्यार की राह में यूँ टिके रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें।


धीरेन्द्र सिंह



सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

तरंग

 तुम तर्क की कसौटी पर

हवा दिशा बहती

अद्भुत तरंग हो,

मैं

भावनाओं की गहनता में

स्पंदनों की तलहटी तलाशता

प्रयासरत

एक भंवर हूँ।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 15 सितंबर 2021

ऊर्ध्व की ओर

 आसमान में उड़ते हुए

हवाई जहाज का गर्जन

नीचे बादलों की सफेद चादर

या कहीं

अपनी मस्ती में 

अलमस्त चाल लिए टुकड़ा बादल

ले जाता है ऐसा दृश्य

कहीं दूर

ऊपर दिखते गहरे नीले

आसमान की ओर,

धरती से कहां दिख पाए सहज

इतना गहरा नीला आसमान,

हवाई जहाज का डैना

करता वायु संतुलन

न जाने कितनी गति से

बढ़ रहा गंतव्य ओर,

वायुयान में बैठ

होता है प्रतीत 

कि आसमान में 

ठहरा हुआ है जहाज

तो कभी मंथर गति से

बढ़ता अनुभव हो

यद्यपि

वायुयान का इंजन

करते रहता गर्जन

अनवरत,

शायद गति से अधिक

बोल जाती है ध्वनि

ऊंचाई छूने पर,

कहीं-कहीं यह भी लगता है

कि

धरा और व्योम को 

ढंक लिया है बादलों ने

सूर्य का तेज

हो गया है काफी मद्धम

जिससे व्योम से दिखे

चहुंओर चमकती सफेदी,

मानव तन और वायुयान

ध्वनि, गति,लक्ष्य लिए

गतिमान

ऊर्ध्व उड़ान ही दे

प्रकृति की नई पहचान,

मानव तन के लिए

धरती भी वैसी ही

जैसे वायुयान के लिए

धरती हैंगर स्थल या

संबंधित यात्रियों को समेट

उड़ान भरने की जगह,

बेवजह धरती पर 

कोई नहीं उतरता

चाहे वायुवान हो या तन 

और संभव नहीं

हर गतिशील का उड़ पाना

चाहे वाहन हो या मनुष्य

तो

उड़ान भी एक विशिष्टता है

एक कुशल संयोजन है

चाहे कल-पुर्जे हों 

या

मन के आसमान के रंग,

उड़ा जा रहा हूँ

अपनी लक्ष्य की ओर

जग समझे 

ठहरा हूँ

या मंथर गति हूँ।


11.49

इंडिगो फ्लाइट

आसमान में रचित

15.09.2021

सोमवार, 13 सितंबर 2021

आठवीं अनुसूची

 संविधान के आधार पर

क्या कर सकी राजभाषा

राष्ट्र हित उपकार ?

कहिए श्रीमान

मेरे आदरणीय 

भारत देश के नागरिक,

सार्थकता प्रश्न में है,

अर्थ उपयोगिता का है,

समस्या दिशा का है,

क्या राजभाषा हिंदी

अकुलाई दिखती है

14 सितंबर को

या

फिर

संविधान की आठवीं अनुसूची में

दर्ज समस्त भाषाएं,

ठगी खड़ी हैं 

सभी भारतीय भाषाएं,

अंग्रेजी का अश्वमेध घोड़ा

गूंज मचाते अपने टाप से

ढांक रहा है

समस्त भारतीय भाषाएं,

हाथ बढ़ रहे अनेक

पकड़ने को लगाम

पर लगाम तक पहुंचे हाथ

जाते हैं सहम,

न जाने क्यों

असुलझा है यह

यक्ष प्रश्न,

राजभाषा नीति

हंसती है, मुस्कराती है

करती है प्रोत्साहित,

चीखती है एक बार फिर

14 सितंबर को

देश की भाषिक दिशाएं,

देख भाषिक अभिनय

अधर मुस्काए, 

वक्तव्य भ्रामक, कल्पित।


धीरेन्द्र सिंह