मंगलवार, 15 जून 2021

छल

बहुत अनुराग था 

हां प्यार था 

दिल भी कहता है 

वह यार था;

पर प्रसिद्धि की थी भूखी 

रिश्तों से विराग था 

पर अंदाज उसके 

जिसमें नव पराग था; 

जीवन की प्रत्यांचाएं 

लक्ष्य से अनुराग था 

बहुत पाना चर्चित हो जाना 

यह भी एक शबाब था; 

प्रियतम से अपने कामा 

फिर पूर्णविराम ताब था 

कई लोगों से करती गुफ्तगू 

उसके प्यार का यही आब था।


धीरेन्द्र सिंह









 

सोमवार, 14 जून 2021

दूजे से बतियाती है

 पहला न करे फोन जुगत यह लगाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


सोशल मीडिया पर साहित्य प्रेम गांव

कुछ न कुछ लिखते सब इसके छांव

लिख उन्मुक्त चाह भरमाती बुलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


घर में करे सवाल तो कहें साहित्य चर्चा

पैसे लगा प्रकाशित पुस्तकों पर चर्चा

कभी मैसेंजर, कभी व्हाट्सएप चलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


कर देती अनब्लॉक पहले प्रेमी से बतियाए

रिश्तेदार का कॉल था झूठ पालना झुलाए

अपने चटखिले पोस्ट उससे हाइड कर जाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है


फिर गोष्ठियों का जुगाड से हो आयोजन

कभी चाय के आगे न खाने का आयोजन

नयन अठखेलियों में छुवन खिलखिलाती है

पहले को ब्लॉक कर दूजे से बतियाती है।


धीरेन्द्र सिंह

घातक कई नारी

 चूस लो यूं जूस लो स्वार्थी हितकारी

सम्मान के प्रलोभन में घातक कई नारी


काव्य लेखन सीखना या कि गद्य लेखन

बोलती शिक्षित हैं पर अब तक संग बेलन

इस विनम्रता पर कहां दिखे भला कटारी

सम्मान के प्रलोभन में घातक कई नारी


महिलाएं भी बन रहीं उन्मुक्त सुजान

कुछ की चाहिए शीघ्र ऊंचा एक मचान

इस लक्ष्य में कहीं विनम्रता तो सिसकारी

सम्मान के प्रलोभन में घातक कई नारी


झूठ है अबला मन की कोमलांगिनी

सत्य यह कि वह प्रचंड सिंहासिनी

वर्चस्वता में प्रखर चाह गज पर सवारी

सम्मान के प्रलोभन में घातक कई नारी


शब्द से भाव गहूं यह तो समुद्र मंथन

विष भी पिलाएं वैसे जैसे लगाएं चंदन

षोडशी सी अदाएं बच्चों की महतारी

सम्मान के प्रलोभन में घातक कई नारी।


धीरेन्द्र सिंह






शनिवार, 12 जून 2021

गीत लिखे

गीत लिखो कोई भाव सरणी बहे
मन की अदाओं को वैतरणी मिले
यह क्या कि तर्क से जिंदगी कस रहे
धड़कनों से राग कोई वरणी मिले

अतुकांत लिखने में फिसलने का डर
तर्कों से इंसानियत के पिघलने का डर
गीत एक तरन्नुम हम_तुम का सिलसिले
नाजुक खयालों में फूलों के नव काफिले

एक प्रश्न करती है फिर प्रश्न नए भरती
अतुकांत रचनाएं भी गीतों से संवरती
विवाद नहीं मनोभावों में अंदाज खिलमिले
गीत अब मिलते कहां अतुकान्त में गिले।

धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 4 जनवरी 2021

उसकी आवारगी

उसकी आवारगी भी कितनी बेमिसाल है
 देख जिसे तितलियां भी हुई बेहाल हैं
 उसकी ज़िद भी उसकी ज़िन्दगी सी लगे 
घेरे परिवेश उलझे आसमां की तलाश है;

 उन्मुक्त करती है टिप्पणियां चुने लोगों पर 
बात पुख्ता हो इमोजी की भी ताल है
 सामान्य लेखन पर भी दे इतराते शब्द खूब 
साहित्यिक गुटबंदी में पहचान, मलाल है;

 एक से प्यार का नाटक लगे उपयोगी जब
 दूजा लगे आकर्षक तो बढ़ता उसका जाल है 
एक पर तोहमत लगाकर गुर्राए दे चेतावनी
 जिस तरह नए को बचाए उसका कमाल है;

 गिर रहा स्तर ऐसे साहित्य और भाषा का भी 
प्यार के झूले पर समूहों का मचा जंजाल है 
शब्द से ज्यादा भौतिक रूप पर केंद्रित लेखन
 उसकी चतुराई भी लेखन का इश्किया गुलाल है। 

धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 5 मई 2020

कविता और शराब

कविता भी शराब होती है
रंग लिए
ढंग लिए
उमंग की तरंग लिए
व्यक्ति में घुल खोती है
कविता भी शराब होती है

इसमें कवि "फ्लेवर" है
लेखन का "टेक्सचर" है
कड़वाहट और मिठास है
मनभावों को खुद में डुबोती है
कविता भी शराब होती है

आरम्भ की पंक्तियों में "वाह"
मध्य भाग में मन चाहे "छाहँ"
अंत में लगे पकड़े कोई "बाहं"
इस तरह अंकुर उन्माद बोती है
कविता भी शराब होती है

जुड़े यदि गायन बन जाती "बार"
नृत्य यदि जुड़े तो महफ़िल खुमार
शब्द भावों से हृदय में उठे झंकार
कविता-शराब में दांत कटी रोटी है
कविता भी शराब होती है।

धीरेन्द्र सिंह

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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

संतों की हत्या

संतों की हत्या कर रही मुझसे बात
निहत्थों की घेर हत्या है कोई घात
एक हवा कहीं बिगड़ी बेखौफ हो
चुप रहना जीवंतता की न सौगात

निहत्थों की हत्या सोते का गला रेत
दोनों में मरे संत क्या कर रही है रात
कई पड़ रही हैं सलवटें बोल इंसानियत
क्या लुप्त की कगार पर आपसी नात

कुछ इसके विरोध में कुछ हैं बस मौन
कौन कहे देश में कब, कहां भीतरघात
साम्प्रदायिक नहीं जज्बाती ना लेखन
एक नागरिक भी न करे क्या ऐसी बात।

धीरेन्द्र सिंह