मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

आज तमस में

आज तमस में फिर सुगंधित अमराई है 
सितारों ने जमघट आज फिर लगाई है 
चाँदनी ने हौले से जो छूआ चौखट 
आँगन तब से सिमटी, लजाई है 

झूम रही शाखें, पत्तियाँ करें बातें 
झींगुर झनक उठे, चाँद से दमक उठे 
हवाओं की ठंडक में निशा लिपट धाई है
आँगन के कोनों से गीत दी सुनाई है 

कहने को रात है पर प्रखर संवाद है 
मन बना लेखनी भाव लगे दावात है 
एक ऋचा पूर्णता को पृष्ठ-पृष्ठ तराई है 
अद्भुत अपूर्व असर आस की छजनाई है

आहट भी शोर करे निशा में भोर करे 
आँगन में चाँदनी आज ना शोर करे 
पौ फटने से पूर्व पौ की रहनुमाई है 
सांखल ना बोल उठे रामा दुहाई है।       

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

शब्द जब भावनाओं में ढलता है

 
शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है

जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है

शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है

हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग 
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीत अपूर्व

 
फिर हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ
नव सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया
अभिनव रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार
फिर चाहत ने राहों से प्रीतजनक तकरार किया

लगन लगी की हो रही चारों ओर बतकही
प्रीत की रीत यह बेढंगी सबने तो स्वीकार किया
अलख जगी तो लगी समाधि समर्पण की
दिल ने जुड़कर पल-पल को जीवन का त्योहार किया

दुनिया की अनदेखी करने का न मिला संस्कार
दूरी रख कर चाहत ने जीने का इकरार किया
वैसे भी सब मिलता नहीं जो चाहे दिल
दर्द-ए-दिल की चिंगारी में हवन बारम्बार हुआ

आखिर वक़्त संवारा आया हट गया साया
दुनिया ने इस श्रुति का आखिर पुकार किया
सच्चाई को जीत अपूर्व मिलती है ज़रूर
मिलती है मंज़िल अगर कोई ना गुमराह किया।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

तुम्हारे हाँ का संदेशा

मेरी मजबूरी है कि तुमसे बड़ी दूरी है
सोचता हूँ कि दिल कैसे करीब आयें
मुझे तुम याद करो इश्क़ आबाद करो
और हम चाहतों का नित सलीब पाएँ 

किसी से जुड़ जाना ज़िंदगी का तराना
मन यह मस्ताना भी नया नसीब पाये
कितने हैं रंग, अनेकों हैं तरंग-उमंग
आशिक़ी हो दबंग अनुभव अजीब पाएँ

तुम में चतुराई है गजब की गहराई है
तुमको सोचूँ तो मन में अदब आए
तुमसे हो बातें तो निखरे इंद्रधनुष
मिले संगत तो इश्क़ शबद गाए

हे प्रिये मेरा तो यही नज़राना है 
इश्क़ ही तो सभी मज़हब समझाए
ज़िंदगी चूम रही पल दर पल तुमको
तुम्हारे हाँ का संदेशा जाने कब आए.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

सत्य-असत्य

मार्ग है प्रशस्त कदम सभी व्यस्त
मंजिल को छूने की सब में खुमारी है
सत्य और असत्य का संघर्ष चहुंओर
निर्णय ना हो पाए कैसी लाचारी है

सत्य को असत्य बनाने की कोशिशें
असत्य की विजय रथ पर सवारी है
ताम-झाम लाग-लश्कर असत्य संग
फिर भी ना कैसे सत्य लगे भारी है

एक तरफ हैं खड़े असत्य से जो लड़े
असत्य के मुकाम पर भीड़ बड़ी भारी है
वह भी इंसान हैं जो असत्य से रहे लड़
और जो इंसान हैं उनकी क्या लाचारी है

सत्य की भट्टी में लौह पिघलता है
सत्य दग्ध सूर्य है तलवार दुधारी है
असत्य में है पद,पैसा और पाजेब
असत्य किसी की अनबोल ताबेदारी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 26 मार्च 2012

संघर्षरत मेरी अमराई

एक युद्ध ज़िंदगी है, चहुं ओर है लड़ाई 
तुम ढाल भी हो और हो भाल के सौदाई 
समर की ना बेला कोई और ना विश्राम 
समझौता कहीं हो रहा कहीं विजय तो दुहाई 

स्वेद मिश्रित लहू है या लहू संग स्वेद
ज़िंदगी को भेद रहा फिर आत्मीय संवेद 
अथक परिश्रम निनाद किन्तु वही चौपाई 
भाग्य की विडम्बना में दुनिया है समाई 

जो मिला है उसको बचाने का हर जतन 
तन-मन की गति में भावनाओं का उफन
मिलन के उल्लास में खिलखिला रही जुदाई
मेरे अपने बन गए या कि फिर मति बौराई

बहुत जीवन बीत गया लगे मौसम रीत गया
साथ जिसका मिल गया स्वप्न सा बीत गया
उम्र जितनी बढ़ती जाये निखरे उतनी तरुणाई
एक तलाश, एक प्यास संघर्षरत मेरी अमराई.  


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

शक्ति, सामर्थ्य और कारवां


शक्ति, सामर्थ्य मिले शौर्य स्वतः आए
श्रेष्ठता स्वमेव कीर्ति पताका पा जाये
भस्मासुर मानिंद जब करे वह परीक्षण
कारवां में अबोला हताशा छा जाये

व्यक्ति की ओजस्विता सिमटी सीमित परिधि
समूह की तेजस्विता बनकर हर्षाए
निजता की भँवर में परिवेश को समेटना
स्वयं की गति में गति हो जाये

बड़प्पन मिलती कहाँ हैं बड़े बहुत यहाँ
महानता के आगे सब नत हो जाएँ
प्रत्यक्ष रहें मुग्धित अप्रत्यक्ष गुनगुनाएँ
एक आदर्श बना क्रमिक ढलते जाएँ

जो हैं पदांध करते बेवजह आक्रांत
प्रशांत को कर उद्वेलित मुसकाए
नासमझ प्रकृति न्याय समझ ना पाएँ
भेड़चाल में संग कारवां दे डुबाय ।




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.