रविवार, 13 मार्च 2011

सुनामी भूकंप


क्या नियति है, निति क्या है, क्या है नियंता
एक प्रकृति के समक्ष लगे सब कुछ है रूहानी
क्या रचित है, ऋचा क्या है, क्या है रमंता
एक सुनामी भूकंप से हो खतम सब यहाँ कहानी 

प्यार कहीं खो गया, यार कहीं सो गया, क्या करें
दिल सुनामी हो गया लगे भूकंप सी यह जिंदगानी
एक अंकुर हुआ क्षणभंगुर खिल ना सका बाग में
पल का फेरा ऐसा घेरा जल में जलते राजा-रानी

है भविष्य गर्भ में फिर भी कल के हैं फरमान  
वर्तमान कल को जीतने की कर रहा है मनमानी
प्रकृति के नियम को तोड़े नित आग नया उसमे छोड़े
हो विराट ले भव्य ठाठ नए राग जड़ने की है ठानी

विश्व में कितना तमस है इंसान भी तो परवश है
छेड़-छाड, मोड़-माड दीवानगी की बेख़ौफ़ रवानी
प्रकृति को अब और ना छेड़ो और ना अब तारे तोड़ो
मानवीय अस्तित्व संवारो प्रकृति है सबसे सयानी. 



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 10 मार्च 2011

रंगों का पर्व

 
ऱंगों का पर्व आया रंग गई हवाएं
मंद कभी तेज चल संदेसा लाएं
एक शोखी घुल कर फिज़ाओं में
पुलकित फुलवारी जैसी छा जाए

अबीर,गुलाल से शोभित हो गुलाब भाल
सुर्ख गाल देख चिहुंक रंग भी भरमाए
अधरों की रंगत छलक-छलक जाए तो
पिचकारी के रंग सब भींग के शरमाए

रंगों के पर्व पर मन हुआ अजीब है
जियरा की हूक बेचैनी दे तड़पाए
फाग की आग में कुंदनी कामनाएं
चोटी पर पहुंच दूर से किसे बुलाए

सत्य का यह विजय पर्व सबको लुभाए
होलिका दहन में राग-द्वेष सब जल जाए
आ गई रंग लेकर के फिर होली यह
ना जाने यह रंग कब किसको छल जाए,




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 7 मार्च 2011

आज महिला दिवस है

शब्द शंकर हो गए बनी भावनाएं भभूत
घंटियों की ध्वनि से बरस रहा रस है
शिखर पर फहरा रही हैं रंगीन पताकाएं
टोलियॉ गूंज उठी आज महिला दिवस है

श्रम, समर्पण, नयन दर्पण जिनका रिवाज़ है
पारिवारिक दायित्वों पर जिसका ही बस है
एक दिवस ऊभर कर नारी की गुहार करे
सर्जना पुकार रही आज महिला दिवस है

शून्य ऑखें ढूंढ रही कहीं अपना मचान
देहरी से बंधे कदम चले ना कोई बस है
शिक्षा, समाज, स्वतंत्रता के तड़प के बोल
खोल दो सांखल मिल आज महिला दिवस है

गॉव, नगर देखिए अब, जो  शहर से दूर हैं
अज्ञानता, अनभिज्ञता का अनर्गल तमस है
नारी आज मिल चलो विजय पथ की ओर
जीत की ज्योत जले आज महिला दिवस है.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

तुम ना देती साथ

जीवन के नित संघर्षों में, वेग बड़ा तूफानी है
नित प्रवाह से मिले थपेड़े, संघर्षरत ज़िंदगानी है
कदम दौड़ते रहते हरदम, हॉथों में लिए प्यास
चूर-चूर कर बिखर मैं जाता, तुम ना देती साथ


प्यार शब्द से यार जुड़ा जिसमें है अख्तियार
संसार में अतिचार है चहुंओर विविध है पुकार
स्वप्न बड़े हैं, लक्ष्य बड़े हैं, हो जाता शिलान्यास
एक नींव से ना जुड़ पाता, तुम ना देती साथ


कोलाहल है, कलुषित-कल्पित यहॉ नया हर भेष है
खुशियॉ, उत्सव, हर्ष, ख्वाहिशें, बस थोड़ी सी शेष हैं
गतिशीलता में ना जाने कब लग जाता एक फॉस
जीवन जटिल जंग हो जाता तुम ना देती साथ

एक हो तुम मृदु तरंगिनी, खूबसूरत लय विश्वास
पुष्पित पल्लवित धरा झूमती संग सरगमी साज
तुम ही हो आत्मशक्ति तुम निज़ता का अहसास
मैं ना रह पाता एक गूंज, तुम ना देती साथ.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 3 मार्च 2011

सत्य,असत्य

सत्य का असत्य का है प्रादुर्भाव यहॉ
किसका पलड़ा भारी है ख़बर नहीं
हर किसी परिवेश में यह युग्मता
एकनिष्ठ हो मानव इसकी सबर नहीं

जीत ही अब मीत है यह रीत है
सत्य, अहिंसा मानो कोई डगर नहीं
अपनी दुनिया, अपनी झोली, स्वार्थ बस
शब्दों में है सांत्वना सच मगर नहीं

नित नए प्रलोभनों से जूझता यथार्थ
साख, प्रतिष्ठा, वैभव निर्मल नज़र नहीं
प्रतिभाएं हैं हाशिए पर स्वंय में तल्लीन
जुगाड़ुओं की चल रही कहीं बसर नहीं

सत्य समर्थित है पूर्ण समर्पित यहॉ
सत्य का संघर्ष है कैंची कतर नहीं
जो टिका है सत्य पर साधक, संज्ञानी है
युग प्रवर्तक है वही शब्दहीन अधर नहीं.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 1 मार्च 2011

हे भैरव

आदि से अनंत तक हो जिसका निनाद
जिसके नेत्र से सदा आलोकित हो गौरव
भस्म,भभूत, भंग, बन विकराल महाकाल
शक्ति का प्रचंड प्रवाह काल डरे सुन भैरव

देख कर त्रिशूल सकुल शूल शमन हो
मुद्राएं अभिव्यक्ति संग संकेत करे तांडव
सृष्टि की छटा में कालिमा सी घटा दिखे
ध्यानमग्न धूल धूसरित कर,करे पराभव

भोले भंडारी हैं, गणों के संग मदारी हैं
पर्वत संग पार्वती पूज्य, जागृत कभी शव
हलाहल का कोलाहल दमित हो बने शून्य
डमरू का डम-डम का दमखम है यह भव

अर्पित मनोभाव हैं, विचित्र सा स्वभाव है
पवित्र, पुण्य प्रतीक हैं, नमन करें मानव
शक्ति दो, सामर्थ्य दो, विजयी पुरूषार्थ दो
मनुष्यता पुलकित रहे, परास्त रहें दानव. 




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

नारी

देखे जब दूसरे ग्रह, हमारी दुनिया सारी
जहाँ भी देखे दिखलाई दे, पुलकित सी नारी
यहाँ जन्म, तो वहां शिक्षा, दिखे तरक्की
कैसे रच लेती है नारी, इतनी सारी क्यारी

अक्सर छुप करती है, मन से अपनी बातें
नयनों में वात्सल्य सदा, लगे दुनिया प्यारी
इल्म, इनायत, इकरार, ना कुछ से इनकार
सर्वगुण संपन्न है यह, जग में सबसे न्यारी

भावुकता संग लिए समर्पण, मन हो जैसे दर्पण
बंधन को कभी ना भूले, ले जिम्मेदारी सारी
चौका-चूल्हा में चुन देते, स्वार्थ के रखवाले
वरना वल्गाएँ हांथों में ले, वक्त पर करें सवारी

यह तो निर्मल जलधारा हैं, बहने दें ना रोकें
शिक्षा, सोहबत, शौर्य, शराफत,सबरंगी संसारी
घर, समाज, विश्व में, जिसके बिना सब मिथ्य
कष्ट, दर्द, को बना हमदर्द, अनुषंगी है नारी.
  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.