शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

नरम हो गए

 पचीसों भरम के करम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


मन की आवारगी की कई कुर्सियां

अनगढ़ भावों की बेलगाम मर्जियाँ 

ना जाने किसके वो धरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


एक नए में नएपन की अकुलाहट

भव्यता चाह की हरदम फुसफुसाहट

न जाने कब हृदयभाव, बरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


सब जगह से किए ब्लॉक, वह तपाक

भोलापन न जाने, ब्लॉक टूटता धमाक

दूजी आईडी से मार्ग बेधरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


ऑनलाइन में होती कहां लुकी-छिपी

मूंदकर आंखें खरगोश सी पाएं खुशी

उनके किस्से भी आखिर सहन हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए।



धीरेन्द्र सिंह

19.04.2024

16.21

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

छू लें हौले से

 आइए बैठकर चुनें रुई की सफेदी

धवलता अब मिलती कहां है

तमस में बत्तियों की टिमटिमाहट

सरलता रब सी मिलती कहां है


अपने घाव पर लें रख रुई फाहा

टीस औरों में दिखती कहां है

खुशियों के गलीचे के भाग्यवान

धूप इनको भी लगती कहां है


आप भी तो रुई सी हैं कोमल

घाव लगना नई बात कहां है

सब कोमलता के ही हैं पुजारी

पूछना अप्रासंगिक कोई घाव नया है


छू लें हौले से मेरे घाव हैं लालायित

मुझ सा बेफिक्र कहनेवाला कहां है

रुई की धवलता ले बोलूं, है स्वीकार्य

आपकी कोमलता सा नज़राना कहां है।


धीरेन्द्र सिंह


17.04.2024

09.08

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

शरीर

 हिंदी साहित्य में रूप का बहु कथ्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही तथ्य है


जब हृदय चीत्कारता, क्या वह बदन है

तथ्य आज है कि, जीव संवेदना गबन


है

क्या प्रणय भौतिकता का निजत्व है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है


अन्तरचेतना में, वलय की हैं बल्लियां

बाह्यचेतना में, लययुक्त स्वर तिल्लियां

चेतना चपल हो, क्या यही पथ्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है


प्रणय का है रूप या रूप का है प्रणय

आसक्तियां चुम्बकीय या समर्पित विनय

व्यक्ति उलझा भंवर में क्या यह त्यज्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है।


धीरेन्द्र सिंह

15.04.2024

18.17

रविवार, 14 अप्रैल 2024

ऋचा

 

अभिव्यक्तियां करे संगत कामना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

जब पढ़ें शब्द लगे जैसे स्केटिंग

शब्द दिल खींचे सम्मोहन मानिंद

शब्दों की थिरकन पर लय बांधना


शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

शब्द हैं सुघड़ तो भाव भी सुघड़

शब्द सौंदर्य पर जाता दिल नड़

रूप सौंदर्य से शब्द सौंदर्य मापना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

अनेक ऋचा पर अनोखी है एक ऋचा

तादात्म्य शब्द का जहां हो न खिंचा

शब्दों के सरगम में शब्दों का नाचना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना।

 

धीरेन्द्र सिंह

14.04.2024

14.32

शनिवार, 13 अप्रैल 2024

अतृप्ता

 

कौन सी गली न घूमी है रिक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

विभिन किस्म के पुरुषों से मित्रता

फ्लर्ट करते हुए करें वृद्ध निजता

अलमस्त लेखन चुराई बन उन्मुक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

नई दिल्ली है इनका निजी शिकारगाह

प्रिय पुरुष मंडली की झूठी वाह-वाह

हिंदी जगत की बन बैठी हैं नियोक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

एक दोहाकार दिल्ली का है अभिलाषी

एक “आपा” कहनेवाले भी हैं प्रत्याशी

एक प्रकाशक का जाल निर्मित संयुक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

हिंदी जगत के यह विवेकहीन मतवाले

अतृप्ता ने भी हैं विभिन्न कलाकार पाले

कुछ दिन थी चुप अब फिर सक्रिय है सुप्ता

यही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.04.2024

19.10

मान लीजिए

 

अचरज है अरज पर क्यों न ध्यान दीजिए

बिना जाने-बुझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

सौंदर्य की देहरी पर होती हैं रश्मियां

एक चाह ही बेबस चले ना मर्जियाँ

अनुत्तरित है प्रश्न थोड़ा सा ध्यान दीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

लतिकाओं से पूछिए आरोहण की प्रक्रिया

सहारा न हो तो जीवन की मंथर हो क्रिया

एक आंच को न क्यों दिल से बांट लीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

शब्दों में भावनाओं की हैं टिमटिमाती दीपिकाएं

आपके सौंदर्य में बहकती हुई लौ गुनगुनाएं

इन अभिव्यक्तियों में आप ही हैं जान लीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए।

 

धीरेन्द्र सिंह


13.04.2024

18.17

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

रसिया हूँ

 

जीवन के हर भाव का मटिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

प्रखर चेतना जब भी बलखाती है

मानव वेदना विस्मित सी अकुलाती है

उन पलों का प्रेम सृजित बखिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

चिन्हित राहों पर गतिमान असंख्य कदम

इन राहों पर सक्रिय संशय बहुत वहम

यथार्थ रचित एक ठाँव का मचिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 


रस है तो जीवन में चहुंओर आनंद

आत्मसृजित रस तो है स्वयं प्रबंध

अंतर्यात्रा के पर्व निमित्त गुझिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.04.2024

05.18