बुधवार, 31 जनवरी 2024

किसान

 सूर्य रखता भाल पर तन पूर्ण स्वेद

माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद


माटी मधुर संगीत बन फसलें लहराए

वनस्पति संग जुगलबंदी से फल इतराएं

कृषक चषक सा माटी में भरता श्रम नेग

माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद


सर्दी की ठिठुरन में खेतों की रखवाली

मर्जी से ना मिल पाए अपनी घरवाली

थाली लोटा ऊंघता माटी भीत को देख

माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद


मौसम मार पशुओं का वार फसल सहे

करे किसानी बस मचान चहुं दिशा गहे

ट्रैक्टर ट्रॉली अर्थ बवाली नहीं विशेष

माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद


अन्न देवता देश का है गरीब किसान

रोटी-बेटी जब जगें माटी दे तब तान

है समर्पित साधक माटी योगी निस्तेज

माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद।


धीरेन्द्र सिंह

01.02.2024

12.29


चलन

 

अस्तित्ब में नित अहं का दहन

बौद्धिकता का कैसा यह चलन

 

सत्य के कथ्य से कटकर दूर

चाटुकारिता करें कहते हुए हुजूर

नई पीढ़ी देख रही लेखकीय गलन

बौद्धिकता का कैसा यह चलन

 

किसी को छपने की ललक प्रथम

किसी को मंच पर महकने का वहम

प्रयासरत निरंतर कहीं तो जुड़े लगन

बौद्धिकता का कैसा यह चलन

 

सोशल मीडिया के हैं असंख्य मित्र

अधिकांश का नाम न पहचानें चित्र

लाइक टिप्पणियों का है यह जतन

बौद्धिकता का कैसा यह चलन।

 

धीरेन्द्र सिंह

31.02.2024

19.40

सोमवार, 29 जनवरी 2024

लीपें अंगना

 

गद्य-पद्य संरचना भांवों के कंगना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

कुछ चाहें लिखना निर्धारित जो मानक

कुछ की अभिव्यक्तियां मुक्त उन्मानक

सर्जना कब चाहती है शर्तों में बंधना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

यह लेखन सही गलत है यह उद्बोधन

पर सबमें निहित अर्थ सार्थक संबोधन

हर सोच नई लेखन नया क्यों दबंगना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना

 

श्रेष्ठता का चयन हो जैसे शबरी बेर

यह क्या लिखनेवालों को करते रहें ढेर

वर्चस्वता का ढोंग भरे उसका संग ना

सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना।

 

धीरेन्द्र सिंह


30.01.2024

12.22

हो जाऊंगा अशुद्ध

 मन को ना छुओ नहीं मैं बुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


प्रीत प्रणय है सदियों की बीमारी

रीत नीति है वादियों की ऋतु मारी

मुझसे जुड़कर प्रवाह करो न अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


आत्म मंथन का हूँ मैं एक पुजारी

पारदर्शी सत्यता इच्छा पूर्ण सारी

सरल शांत मन ना कहीं अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


उसे चिढ़ाता था कह रानी दिखलाओ

वह कहती थी कर्मठता तो दिखलाओ

वह थी रानी राजा सा मैं निबद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा में अशुद्ध


व्यक्तित्व मेरा हवन सुगंधित ज्वाला

कृतित्व को उसने टोह-टोह रच डाला

उससा कोई कहीं नहीं थी बड़ी प्रबुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2024


20.43


रविवार, 28 जनवरी 2024

प्रणय

 जब हृदय पुष्पित हुआ

प्रणय आभासित हुआ

व्योम तक गूंज उठी

दिल आकाशित हुआ


अभिव्यक्तियों की उलझनें

भाव आशातित हुआ

प्रणय की पुकार यह

सब अप्रत्याशित हुआ


राम की सी प्राणप्रतिष्ठा

महक मर्यादित हुआ

अरुण योगीराज सा

मनमूर्ति परिचारित हुआ


हृदय उल्लसित कुसुमित

सुगंध पर आश्रित हुआ

प्रणय बिन कहे बहे


व्यक्ति बस मात्रिक हुआ।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2024

08.45

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

स्व

 

सर्जना का उन्नयन हो अर्चना दे विश्वास

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

मन करता सर्जना लिपटाए प्रकृति अनुराग

स्व में सृष्टि समाहित हँस करती द्वाराचार

धरा स्वयं में हरी-भरी मिले नीला आकाश

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

जग लगता अवचेतन मन भीतर ही चेतन

स्पंदित, सुगंधित, समंजित है स्वधन

निपट अकेला संग जीवन खेला होता आभास

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश

 

इससे बोलो उसको फोन मन जैसे हो द्रोन

स्व मरीन अकुलाहट, बेचैनी दोषी फिर कौन

दुनियादारी दायित्व तलक फिर अपना आकाश

आत्मा जब लेती है जकड़ अपने बाहुपाश।

 

धीरेन्द्र सिंह


26.01.2024

19.19

बुधवार, 24 जनवरी 2024

दिल एक

 

कोई तो बताए एक से अधिक प्यार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

पंखुड़ी की ओस में लिपट भावनाएं

सुगंध सी प्रवाहित होकर कामनाएं

पलकों से उठा चूनर करें अभिसार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

रिश्ता तोड़ गयीं छोड़ गयीं महारानी

क्या यह उचित ढूंढें एक देवरानी

प्यार का भी अंग होता है प्रतिकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

माना कि बेखुदी मैं जाते हैं लट उलझ

यह एक दुर्घटना है प्यार ना सहज

दूसरों में ढूंढते एक उसी की झंकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकासर।

 

धीरेन्द्र सिंह

24.01.2024

22.58