शनिवार, 27 मई 2023

सेंगोल


कांपती अंगुलियों ने

28 मई 23 को

सेंगोल को 

नए संसद में

किया था स्थापित

तब प्रवाहित हुई थी

विद्युतीय तरंग

सेंगोल से संसद में

गुजरती मोदी अंगुलियों से

जैसे

जटा भोले से 

हुई थी प्रवाहित मां गंगा

भूतल पर,


कंपन प्रमाण है

जीवंतता का

परिवेश सहबद्धता का

विभिन्न मंत्रों की अनुगूंज लिए

नया संसद 

तत्पर है

 वैश्विक नेतृत्व के लिए।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2023

11.07


रविवार, 14 मई 2023

नक्को प्यार

 अवसादों का दे, अभिनव झंकार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


अतृप्त कामनाओं का है निनाद

विस्मृत सुधियों का है संवाद

पल प्रति पल बस मांगे इकरार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


शब्द वाक्य भाव, रहते अंझुराय

अर्थ युक्ति अभिव्यक्ति धाय

कभी किनारे लगे कभी मझधार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


मन पुकारे, मोबाइल पर नहीं उठाया

कैसे कह दूं अपना जब कृत्य पराया

चाहत चकनाचूर यह तो दुत्कार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


कुछ महीने प्रीत की अविरल फुहार

फिर छींटों में दिखे आपसी प्रतिकार

महीनों तक खींचे, गूंज ललकार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार


सोशल मीडिया फोन अचानक ब्लॉक

रोशनदान भी नहीं रोशनी कैसे झांक

थर्ड पार्टी बीच, उल्लसित मदभार

ना बाबा ना बाबा नक्को प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

14.05.2023

04.38


शुक्रवार, 12 मई 2023

मर्तबान

 कथ्य की नगरी में तथ्य मर्तबान है

झूठ को खरीदिए सजी दुकान है


छल की छुकछुकाहट नहीं है कबाहट

कड़वाहट का अब असंभव निदान है


क्षद्म का बज़्म आकर्षण का केंद्र

प्रवेश मिल जाएगा गर मेहरबान हैं


निजता के हांथों तौल गए कई लोग

धूर्तता का एक अपना संविधान है


भोली सूरत का प्रेम खुदगर्ज सा 

फिर भी रहो जुड़े कि कीर्तिमान है


संशय के अंजन से सजी हुई अंखिया 

आधीरात को कहें हुआ बिहान है


कब कौन किस कदर लूटे अस्मिता

भावनाओं को छुपाए कब्रिस्तान है।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2023

23.05

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

डाली सी तुम

 डाली सी तुम 


लचकती डालियों में पुष्प बहार है

कब कही डाली बहुत ही भार है 


प्रकृति सौंदर्य का एक प्रतिमान है

सुगंध, रंग का एक अभिमान है

डालियाँ झोंका हवा शुमार है

कब कही डाली बहुत ही भार है


छोड़ जाती हैं लदी सारी पत्तियां

पुष्प झर जाते समेटे आसक्तियाँ 

लचक डाली भी लगे खुमार है 

कब कही डाली बहुत ही भार है 


सावन में सज जाते कई झूले

बूंदें भी लटकती तन छू ले 

भीगी डाली में हौसले बेशुमार है 

कब कही डाली बहुत ही भार है 


डाली सी तुम जैसी सबका अधिकरण 

संभालो भी तो कैसे यह पर्यावरण 

कहीं सूखा कहीं कटारी वार है 

कब कही डाली बहुत ही भार है। 


धीरेंद्र सिंह 

26.04.2023

13॰17

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

घुसपैठिया

 जब मैं

तुम्हारी निगाहों से

उत्तर जाता हूँ

दिल में तुम्हारे

और बैठ जाता हूँ

दिल के किसी कोने में

तो तुम

नहीं समझ पाती

यह पैठ

भला कहां समझ आते हैं

शीघ्र घुसपैठिए,


होते जाता हूँ मुग्ध

दिन-प्रतिदिन

देख तुम्हारी कल्पनाशीलता

और विविध शाब्दिक बुनावटें,

दिल कभी मुस्कराता है

कभी होता गंभीर

कभी चंचल चुलबुला

कभी दर्द लकीर

और झपकता है तेज

तुम्हारी पलकों से,


यदा-कदा

करता है जिक्र दिल

मेरे नाम का

तब ठहरती हो क्षण भर

कि कहे दिल कुछ और

पर कुछ और बोलते जाता है,


तुम्हारी तरह

उत्सुक हूँ मैं भी

क्या बोलता है दिल

और जिस दिन

बोल उठेगा दिल

लिख दोगी तुम अपनी

एक नई कविता 

दिल हो जाऊंगा उस दिन

तुम्हारा ओ शुचिता। 


धीरेन्द्र सिंह

12.04.2023

06.02

जीवन

 यादों के बिस्तर पर

अभिलाषाओं की करवटें

सिलवटों में दर्द उभरे

भावनाओं की पुरवटें


दिल में पदचाप ध्वनि

पलक बंद ले तरवटें

अनुभूतियों की आंधी चले

तोड़ सारी सरहदें


विवशता के समझौते हैं

व्यक्ति उड़ रहा परकटे

पुलकावलि करे सुगंधित

तन समर्पित मनहटे


निरंतर जीवन विभाजित

व्यक्तित्व के झुरमुटें

व्यवहार ले बहुरूपिया

जुगनुओं सा जल उठें।


धीरेन्द्र सिंह

12.04.2023

04.35

क्यों श्रृंगार पर रचें

प्रेमिका प्रेमी यदि अपना भगा दे

विखंडित हो ही जाती संलग्नता

विगत जुगनू सा चमका लगे तो

चाह हंसती समाए कुरूप नग्नता


समर्पण करनेवाला करे जब तर्पण

वायदों की चिता सी हो निमग्नता

एक टूटन बिखरने लगे परिवेश भर

व्योम तपने लगे पा राख की दग्धता


कोई दूजा बना अपना, मिल जपना

खपना एक-दूजे की, तन सिक्तता

पाला बदलते, जो करे प्यार अक्सर

छपना देह पर, खुश देख दिल रिक्तता


भावशून्य भी जलते हैं, अलाव बहुत

चर्चे में यही, अलाव रचित स्निग्धिता

तपन का तौर, निज संतुष्टि साधित

दहन में दौर, भाव ग्रसित विरक्तिता


हृदय हारा हुआ सैनिक सा गुमसुम कहीं

तन लगे विजयी सम्राट की लयबद्धता

क्यों श्रृंगार पर रचें रचनाकार सब

भ्रमित राह पर जब प्रीत की गतिबद्धता।


धीरेन्द्र सिंह

11.04.2023

13.36