जिंदगी के कश्मकश में
चाहत किश्मिश सा स्वाद
किस्मत किसलय सा लगे
चहक किंचित घटे विवाद
पगुराते नयनों में गहि छवि
पलक नमी करे संवाद
प्रतीकात्मक भाव बन गए
परखे गहराई हर नाद
साथ पकड़कर जीवन चलता
हाँथ-हाँथ रचे नाथ
शाख-शाख पर कूदाफांदी
माथ-माथ नई बात
कितनी उलझन झनक रही
सुलझन गति भी निर्बाध
उतनी विलगन बढ़ती जाए
सुलगन में गल रहे मांद।
धीरेन्द्र सिंह
30.04.2025
22.53