भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
जल में प्रवाहित ज्योति
होती है आस्था
और माटी का दीपक
एक आधार,
तट इसी प्रक्रिया से
हो उठता है
विशिष्ट, महत्वपूर्ण
और पूजनीय भी,
चेतना की लहरों पर
प्रज्ञा की लौ
और मानव तन,
सृष्टि है सुगम
सृष्टि है गहन।
धीरेन्द्र सिंह
15.01.2025
23.20