शनिवार, 25 जनवरी 2025

बंदगी

 चलिए न जिस तरह ले चलती हैं जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


उड़ान के लिए एक छोर चाहता है बंदगी

वरना उड़ा ले जाएगी अनजानी जिंदगी

अच्छा लगता है अदाओं की भी नुमाइंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


एक हो आधार तयशुदा ठहराव का द्वार

धूरी हो तो मन बहकने का है यह आधार

जिंदगी एक नियमित भटकाव क्यों शर्मिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


कहां कब होता मृदुल भटकाव बताता है कौन

मधुरतम भावनाएं लहरतीं है पर होती है मौन

जिंदगी व्यस्तता में लड़खड़ाते ढूंढती है जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी।


धीरेन्द्र सिंह

25.01.2025

21.30