चलिए न जिस तरह ले चलती हैं जिंदगी
यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी
उड़ान के लिए एक छोर चाहता है बंदगी
वरना उड़ा ले जाएगी अनजानी जिंदगी
अच्छा लगता है अदाओं की भी नुमाइंदगी
यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी
एक हो आधार तयशुदा ठहराव का द्वार
धूरी हो तो मन बहकने का है यह आधार
जिंदगी एक नियमित भटकाव क्यों शर्मिंदगी
यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी
कहां कब होता मृदुल भटकाव बताता है कौन
मधुरतम भावनाएं लहरतीं है पर होती है मौन
जिंदगी व्यस्तता में लड़खड़ाते ढूंढती है जिंदगी
यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी।
धीरेन्द्र सिंह
25.01.2025
21.30