मंगलवार, 21 मई 2024

दहक

 तुम्हें इस कदर हम देखा किए हैं

कि निगाहों को कोई भी जंचता नहीं

खूबी जो तुम में बुलाती हमें ही

तुम्हारे नयन प्यार हंसता नहीं


बहुत जानती हो तराना मोहबत के

एहसासों में यूं कोई बसता नहीं

हुनर प्रीत का बनाती हो मौलिक

किसी और में यह दिखता नहीं


एक चाह का उछाल संबोधन तुम

आप बोलूं तो प्यार झलकता नहीं

एक आदर और सम्मान समर्पित

बिन इसके प्यार खुल हंसता नही 


प्यार तो विनम्रता की उन्मादी हिलोर

बिना तट के प्यार बहकता नही 

लहरों की ऊर्जा हो स्पंदित तुम में

जब तक न बहको दहकता नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

22.30



पलकों की घूंघट

 

पलकों की घूंघट में छिपता है प्यार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

एक हृदय धड़का हो आकर्षित तड़पा

एक खिंचाव अनजान विकसित कड़का

छन्न हुई अनुभूतियां लेकर वह खुमार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

अनजाने प्राण में लगे समाहित प्राण

अपरिचित व्यक्तित्व चावल कहां मांड

दो हृदय एक लगें भीनी सी झंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

मानवीय समाज की हैं विभिन्न रीतियाँ

प्यार जताने की नियंत्रित हैं नीतियां

प्यार तो उन्मुक्त नकारे विभक्ति द्वार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

पूछिए दिलतार से भंजित प्यार वेदनाएं

कब छूटा कैसे टूटा भला कोई क्यों बताए

टीस, तड़प, नैतिकता खड़ग की टंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

15.29