बुधवार, 26 मार्च 2025

लूट लिए

 कभी आंगन में बिछाकर सपने

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने


बहुत चाह सी थी उनपर निर्भर

मेरे साथ हैं तो स्वर्णिम है घर

बड़े विश्वास से टूट गया अंगने

मुझको लूट लिए मेरे ही सपने


उमंग, तरंग, विहंग सी भावनाएं

आदर्श, सिद्धांत, समाज कामनाएं

चक्रव्यूह रच ढहा दिया भय ने

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने


कहां थी कल्पनाएं कहां अब बताएं

किसी से क्या बोलें, क्षद्म हैं सजाए

व्यक्ति सत्य या भ्रम, यही है सबमें

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2025

09.01

सीखचों

 सीखचों से मैं घिरा आप क्या आजाद हैं

खींच तो हैं सब रहें पर मुआ जज्बात है


पल्लवन की आस में झूमती हैं डालियां

कलियां रहीं टूट अर्चना की तो बात है


व्यक्ति पंख फड़फड़ाता पिंजरे के भीतर

कौन कहता हर संग नभ का नात है


मनचाहा सींखचे कुछ दिन लुभाती रहें

बंधनों के दर्द में जपनाम ही नाथ है


जो बचता सींखचों से दीवाना कहलाता

जिंदगी की क्या कहें बंदगी हालात हैं।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2025

08.26