झुरमुटों को पंख लग गए हैं
बिखरकर प्रबंध रच गए हैं
हवा न बोली न सूरज बौराया
अब लगे झुरमुट ही ठंस गए हैं
झुनझुनाहट झुरमुटों का स्वभाव है
झुंड ही विवेचना कर गए हैं
आंख मूंद उड़ रहे हैं झुरमुट
उत्तुंग कामना स्वर भए हैं
रेंग रहीं चींटियां झुरमुटों पास
दीमक उभर आग्रह कर गए
पंख लगे झुरमुट क्या यथार्थ है
प्रश्न उभरे दुराग्रह धर गए
विकास की विन्यास की प्रक्रिया
परिवर्तन साध्य समय कह गए
चिंतनीय जीवंतता जहां हुई क्षीण
संस्कार, संस्कृति, समाज बह गए।
धीरेन्द्र सिंह
05.12.2024
19.05
पुणे