सोमवार, 11 अप्रैल 2011

कैसे ना चाहे दिल


क्या कहूँ क्या-क्या गुजर जाता है
इश्क जब दिल से गुजर जाता है

एक संभावना बनती है संवरती है
पल ना जाने कैसे मुकर जाता है

एक से हो गयी मोहब्बत बात गयी
इश्क फिर दोबारा ना हो पाता है

ना जाने क्यों दूजे की ना बात करें
इंसान खुद से खुद को छुपाता है

दिल को छू ले तो हो जाए प्यार
प्रीत की रीत जमाना झुठलाता है

कैसे ना चाहे दिल यह खूबसूरती
जब लिखती हो दिल पिघल जाता है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.