होली के दिन
प्रातः 7.15 पर
उनको भेज दिया
होली संदेसा
कुल छह परिच्छेद में
निखरा-उभरा-बिखरा
मनोभाव उन्मुक्त,
इस संदेसे में
मात्र शुभकामनाएं ही नहीं
बल्कि
मनोकामनाएं भी थीं
और था हुडदंगी विचार,
टाइप पूर्ण कर जब पढ़ा
तो हुआ आश्चर्य खुद पर
इतना सब कैसे और
क्यों लिख दिया ?
चाहकर भी
नहीं कर सका डिलीट,
दोपहरी गुजर गई
पर न आया उनका उत्तर
बार-बार देखता पर
उनका संदेसा न पाया,
मुझे लगा
शायद उन्हें बुरा लगा हो
एक भय निर्मित हुआ
और अपमान का क्रोध भी
डिलीट कर दिया संदेसा,
मुझे होली संदेसा में
नहीं लेनी चाहिए थी
अभिव्यक्ति की इतनी छूट,
खुद को कोसते रहा
होली के रंगों संग
कि उनका संदेसा आया
Happy Holi
लगा जीवनदान मिल गया,
“फेस्टिवल के दिन बहुत
काम होता है आपको पता ही है।
टाइम नहीं मिल रहा था
रिप्लाई करने का,।“
उनका यह संदेश रंग गया
भीतर तक,
आरम्भ हुआ उनका संदेश
शब्दविहीन
इमोजी, इमेज आदि संग,
झेल न पाया वह तरंग
हाँथ जोड़ बोला
बस अब और नहीं
मिल गए सभी रंग,
बस कीजिए न!
गिड़गिड़ाया,
शब्द बौने पड़ गए थे
इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट
प्रतीक, इमेज के आगे
या कि
अभिव्यक्ति में
महिला हमेशा से
पुरुष से हैं आगे।
धीरेन्द्र सिंह
15.03.2025
07.22