सोमवार, 2 जून 2025

अर्थपूर्ण

 एक बात कहूँ आप यूं ना सोचिए

हर बात अर्थपूर्ण कहां होती है

एक समीक्षक की तरह ना देखिए

हर नात गर्भपूर्ण कहां ज्योति है


समझौता ही एकमात्र है विकल्प

जिंदगी स्वप्न जैसी कहां होती है

शोधार्थी की तरह जारी रहे शोध

बंदगी, यत्न ऐसी जहां रीति है


टूटते तारे हों तो है चमकता रिश्ता

रोशनी खास अब यहां कहां होती है

अंधेरा भर रहा धुआं बन सीने में

सुलगन अब कहाँ आग लिए होती है


हर चेहरे पर संतुष्टि का है मेकअप 

चेहरे पर खिली चांदनी कहां होती है

कहिए कि नकारात्मक सोच का लेखन

चहकना सीख ले जिंदगी वहीं होती है।


धीरेन्द्र सिंह

03.06.2025

09.12