शनिवार, 8 जून 2013

तुम्हारे लिए

एक बार मेरे -ख़यालों के दरमियाँ
तेरे हुस्न का नशा एहसास नर्मियाँ
देता है मुझे बांध ऐसी नाज़ुक डोर से 
छा जातीं हैं दिल पर अनजान बदलियाँ 

मेरी परिधि की सीमा छोटी या बड़ी
मिलती हो तुम खड़ी उढ़की ले खिड़कियाँ
गलियों से गुजरना आसान ना लगे 
नज़रों से लोग देते हैं बेखौफ घुड़कियाँ 

बदनाम ना हो जाऊँ पर तुमको पा जाऊँ 
कैसे तुम्हें सुनाऊँ चाहत की सिसकियाँ 
खिंचता हूँ तुम्हारी ओर ना ओर ना छोर 
दिल करता बड़ा शोर अब लो ना चुटकियाँ।  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
 दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.