सोमवार, 12 अगस्त 2024

शेष रचना

 रचित हो गए शेष फिर भी है रचना

हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना


कहां कोई रुकता है जब तक स्पंदन

समय रचता मुग्धकारी नव निबंधन

हर एक प्राण चाह नित जीवंत बहना

हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना


हृदय कब कहा अब तरंगें नहीं हैं

कल्पना कब कही अब उमंगें नहीं है

अभिलाषा अछूता हंसा आज गहना

हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना


कह ही दिया कहन की लगी अगन

घेरेबंदी में है मौन प्रतीक्षारत गगन

मोहित पुलकित हुआ पढ़ मन अंगना

हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना।


धीरेन्द्र सिंह

13.08.2024

12.17


मत आओ

 मत आओ मुझसे करने प्यार

हो गया तो स्वयं करो सत्कार


आरम्भिक दो महीने मधुर झंकार

फिर होती नौका बिन पतवार

प्रश्न उठता बलखाती क्यों धार

हो गया तो स्वयं करो सत्कार


प्रश्न ऐसे उभरे भाग जाएं यक्ष

जैसे बतलाओ हृदय कितने कक्ष

राम सा ही हृदय बजरंगी उद्गार

हो गया तो स्वयं करो सत्कार


प्यार जाए पार्श्व सक्रिय प्रश्नोत्तरी

कहां किया प्यार, किस्मत धत तेरी

कोई नहीं होता ऐसे में मदतगार

हो गया तो स्वयं करो सत्कार।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2024

09.11