गुरुवार, 18 नवंबर 2010

अबूझा यह दुलार है

मन के हर क्रंदन में, वंदनीय अनुराग है
नयन नीर तीर पर, सहमा हुआ विश्वास है,
अलगनी पर लटका-लटका देह स्नेह तृष्णगी
ज़िंदगी अलमस्त सी, लगे कि मधुमास है

घटित होती घटनाओं का सूचनाई अम्बार है
इस गली में छींक-खांसी, उस गली बुखार है,
प्रत्यंचा सा खिंचा, लिपा-पुता हर चेहरा
ज़िंदगी फिर भी धड़के, गज़ब का करार है

शबनमी तमन्नाओं में, नित ओस बारम्बार है
स्वप्न महल बन रहा, खोया-खोया आधार है,
आसमान को पकड़ने को, थकन चूर कोशिशें
ज़िंदगी फिर भी उड़े, अबूझा यह दुलार है