नादानियाँ नहीं तो उम्र का क्या मजा
जो वर्ष गिनना जानें दें उम्र को सजा
कब चढ़ती उम्र कब ढलती है जवानी
ढूंढा इसे बहुत कह न पाई जिंदगानी
मन जवां तन बूढ़ा आजकल दें धता
प्यार की है परिधि जमाना रहा जता
दिल के जो जानकार पढ़ते हैं तरंगे
मिल अँखियों से अँखियाँ रचे उमंगें
दिल-दिल से पूछता चैट का समय बता
छुप-छुप किशोरावस्था की पाएं अदा
नयनों में भक्ति है बसते हैं आराध्य
बातों में भजन है हर वेदना का साध्य
तन भी तो मंदिर है मन हवनकुंड सदा
भावों को क्यों दबाना दे दीजिए सदा।
धीरेन्द्र सिंह
01.05.2025
13.33