शुक्रवार, 22 जून 2012

स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं


स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें इरादों में दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेस बूक, ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 13 जून 2012

श्याम घटा की रागिनी


कब सुन्दर लग जाता कोई
कब दिल को छू जाता है
एक पल का केवल मिलना
लगता जन्मों का नाता है

कहते हैं कि दृष्टि हो सुन्दर
सब सुन्दर लग जाता है
यदि ऐसा कहना सच है तो
दिल को हर क्यों ना भाता है

दिनों साथ रहता संग कोई
प्रीति अधजगी रहती सोई
दिल दृष्टि ना अकुलाता है
उठती कोई ना जिज्ञासा है

आप मधुभरी चाँदनी जैसी
श्याम घटा की रागिनी जैसी
ह्रदय प्यार यह छलकाता है
दिल से दिल का यह नाता है

कैसी प्रतीक्षा कैसा यह अनमन
छोड़िये दिल दिमाग की अनबन
दिल की चाहत को चुकाना है
बस प्यार से उन्हें बतलाना है.  





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 12 जून 2012

बरखा (बाल गीत)


बरखा रानी बूँद भर पानी
भर देती प्रकृति में रवानी
कोयल कूके,पत्ते सब गायें
धरा को मानो मिली जवानी

बादल नभ में दौड़े धायें
मेढक गली-गली टर्राएँ
चारों तरफ पानी ही पानी
बरखा बरसे लगे सयानी

पक्षी दुबके देख ठिकाना
हरियाली का गूंजे गाना
बरखा की चलती मनमानी
चिड़िया ढूंढे दाना-पानी

काले-काले घने बादल आये
बिजली चमके और डराए
चले सन-सन हवा सयानी
खिडकी भीतर आये पानी

बरखा है तो है जिंदगानी
मौसम भी लगता गुण ज्ञानी
रिमझिम-रिमझिम का संगीत
बरखा की है यही कहानी.   





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 8 जून 2012

किसी उम्मीद में


किसी उम्मीद में शब् भर रहा, जलता दिया 
भोर की किरणों ने, आकर जो हंगामा किया 
तपिश से भर गया एहसास, एक खुशबू लिए
सुबह की लालिमा ने, ओ़स को जी भर पिया

यह क्यों होता है कैसे, लगे मौसम हो जैसे 
अभी बदली,अभी धूप, लुकाछिपी सी झलकियाँ 
इक आभा को लिए, शब् भर खिले चन्दा 
ना जाने क्यों छुपा देती हैं, हरजाई बदलियाँ 

तड़प संग आती है तरस, अकुलाई प्यासी सी
हसरतें चाहत की कटि पर, उठाये गगरियाँ 
अपने पनघट की तलाश में, जाए गुजर जीवन
हौसले टूटते ना हो भले, चहुँ ओर लाचारियाँ 

कैसा मोबाइल, कैसा स्कायपे, तकनीक का बंजर 
मरीचिका हैं घटाती ,ना तिल भर भी दूरियां 
छिटक चिनगारी सी, धू -धू लगाती आग यह 
मुबारक उनको यह, गजेट जिनकी यह कमजोरियां 

दिल अब भी दिल से मिलता है, तनहाईयों में 
सदा आती है जाती है, मिलती देती बधाइयाँ 
प्यार मोहताज़ ना रहा, कभी किसी सहारे का 
ठुमक उठता है जिस्म, सुन दिलों की शहनाईयां.   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.