शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

हद है कि इश्क़ अब दीवान हो गया
इंसान भी गुम होकर महान हो गया

इश्क़ तकिया कभी बिछौना सा बनाएं
आरामगाह तो कभी अभियान हो गया

उनके गेसुओं में उलझने का न मौका 
तत्काल टिकट सा इश्क़ सामान हो गया

किसको पड़ी निगाहों में उतरने की फिक्र आज
अब यूं लगे कि इश्क़ बेजुबान हो गया

सिर्फ बाहों के घेरे के अधिकांश चितेरे भरे
झटपट फटाफट लिपट का कद्रदान हो गया

धडकनों, तड़पनों, उलझनों का मज़ा भूले
इश्क़ एहसास ना रहा बड़ा नादान हो गया।
कुछ कुछ ज़िन्दगी सिखलाने लगी है
दे इश्किया मिजाज बहलाने लगी है

वर्षों से जिनके साथ कट रही है जिंदगी
क्या हुआ कि ज़िन्दगी ही फुसलाने लगी है

एक वह शख्स मेरी ज़िंदगी में छाए इस कदर
किसी भी छाए में याद खूब गुदगुदाने लगी है

उनके पहलू में भी दरमियाँ आ जाये वह हरदम
भरम रहे कि उसकी अंगुलियां सहलाने लगी है

किसी के साथ ज़िन्दगी किसी के पास ज़िन्दगी
मोहब्बत इल्म बनकर क्यों इठलाने लगी है

नहीं गंवारा उनकी बाहों का बंधन कसम से
दिल रोए और जिस्म जुल्म उठाने लगी है

किस मोड़ पर मिले हम कि ना विद्रोह दम
नए हमदम की चाहत रोज रुलाने लगी है।

निज़ता

निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ताअभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई हैदिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
शब्द सहमत नहीं
भावनाएं ढल रहीं
खयाल उनका है ऐसा
लचक कहीं बल कहीं

घनेरे बादलों से घिरा
लगे आसमां चपल नहीं
बिजलियाँ चमक रहीं
लगे क्यों धवल नहीं

यादें ऐसे ही तड़पायें
तन में हलचल नहीं
यह स्थिरता है अजब
स्पंदन पल-पल कहीं

अभिव्यक्तियाँ मस्तियाँ बनी
सम्प्रेषण में कलकल नहीं
एक आकर्षण सहज सा
प्रिये जहां मन भी वहीं।
मैं भी तो किसी जिस्म की फरियाद हूँ
कल्पनाओं में अभी तक अविजित नाबाद हूँ

ज़िन्दगी को जिस तरह जिलाओ जी लेती है
मैं भी तो किसी खयालों का प्यारा आफताब हूँ

कहीं कभी तो किसी को छू लेगा मन मेरा भी
चूनर की चुनहटों में फुसफुसाती एक आवाज हूँ

मन मयूर की तरह फैलाए है पंख ऐ जहां
जहां में मेरी भी जन्नत जहां मैं लाजवाब हूँ

मेरी प्रिये मन में जिये कुछ फलसफे लिए
मैं  आवारगी के चमन का दिलफेंक आदाब हूँ।