बुधवार, 28 जून 2017

मन पानी की तरह है
जिधर ढलना ढल जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा

हर मन का अपना पवन है
मन की प्रीत बड़ी गहन है
मन किसी बांध से न बंधे
मन को जब बहना बह जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा

किसी के मन पर अख्तियार
अरे यह सोचना है बेकार
बेजार मन जब तड़पायेगा
ढलान मिले वहीं बह जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा

प्रयास, कोशिश, एफर्ट, मेहनत
या कि वर्षों से हो सोहबत
लगन जिसकी लगी लुढ़क जाएगा
बर्फ चट्टानी लिए बह जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा

यह हंसी, बोल, जो किल्लोल है
मन का मन से लगे होता मेल है
गोलमोल हो तू कितना लुभाएगा
मन चुपके से बहा चला जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा

बीते जमाने की शायरी का ले जोश
सोच मत प्रतियोगी हो जाएं खामोश
ऑनलाइन दुनिया में कब क्या हो जाएगा
मन आज इधर कल उधर बह जाएगा
बावरे तू न कुछ कर पाएगा।