आइए संयुक्त मिल रचना करें
साहित्य में मिल कुछ गहना धरें
आप भी बुनकर तो बेमिसाल हैं
युग्म से रच स्वर्ण अंगना भरें
दस ग्राम स्वर्ण मूल्य एक लाख
खरीदें या बेचें चंचल चाह आंख
और कितने शब्द थकते दुःख हरे
सुनहरा हो रसभरा यूं रचना करें
मूल्य सबका बढ़ रहा, यहां स्थिरता
क्या कहीं कमजोर पड़ती, निर्भरता
हाँथ मेरा बढ़ चुका संग उमंग गहें
हम भी मूल्यवान हों लयबद्ध बहें
समय सबको जोड़ता है तोड़ता है
सजग जो रहें समय भी जोड़ता है
स्वर्णमुद्रा सा सब शब्द दीप्तिभरे
चिंतन, मनन करें संग रंग सुनहरे।
धीरेन्द्र सिंह
16.04.2025
12.22