शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

मीटिंग एक आदत या अनिवार्यता
नियमित है होती नया अक्सर लापता
इस संग यदि समारोह जुड़ जाए
भोजन समय चर्चा, कहो क्या पाए

फोटो की होड़ कोशिश जी तोड़
शब्दों के शास्त्रों से सोच दें मरोड़
बोलने की कोशिश बोलता ही जाए
चाय समय सोचें, क्या खोया क्या पाए

सोच और अभिव्यक्ति होती भिन्न- भिन्न
कथनी ना संयोजित तो कर दे मन खिन्न
प्रस्तुति कौशलकर्ता मन में खिलखिलाए
अभिव्यक्तिहीन कर्मठता उपेक्षित रह जाए

मीटिंगों का दौर एकसा सबका तौर
पर लगे ऐसा नवीन गहनता का तौर
मीटिंग समाप्ति पर मन जयकार लगाए
अबकी भी छूटे देखो अगली कब बुलाए।

धीरेन्द्र सिंह