रविवार, 27 अप्रैल 2025

कविता

 कविता प्रायः

ढूंढ ही लेती है

धुंध से

वह तस्वीर

जो

तुम्हारी साँसों से

होती है निर्मित

और जिसे

पढ़ पाना अन्य के लिए

एक

दुरूह कार्य है,


कल्पनाएं

धुंध से लिपट

कर लेती है

‘ब्लेंड’ खुद को

एक

‘इंडियन मेड स्कॉच’

,की तरह

और

दौड़ पड़ती है

धुंध संग

पाने तुम्हारी तरंग,


बहुत आसान नहीं होता है

तुम तक पहुंचना

या

तुम्हें छू पाना

तुम

जंगल के अनचीन्हे

फूल की तरह

पुष्पित, सुगंधित

और मैं

धुंध से राह 

निर्मित करता

एक

अतिरंगी सोच।


धीरेन्द्र सिंह

27.04.2025

21.24



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें