कविता प्रायः
ढूंढ ही लेती है
धुंध से
वह तस्वीर
जो
तुम्हारी साँसों से
होती है निर्मित
और जिसे
पढ़ पाना अन्य के लिए
एक
दुरूह कार्य है,
कल्पनाएं
धुंध से लिपट
कर लेती है
‘ब्लेंड’ खुद को
एक
‘इंडियन मेड स्कॉच’
,की तरह
और
दौड़ पड़ती है
धुंध संग
पाने तुम्हारी तरंग,
बहुत आसान नहीं होता है
तुम तक पहुंचना
या
तुम्हें छू पाना
तुम
जंगल के अनचीन्हे
फूल की तरह
पुष्पित, सुगंधित
और मैं
धुंध से राह
निर्मित करता
एक
अतिरंगी सोच।
धीरेन्द्र सिंह
27.04.2025
21.24
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