कविताओं में
शब्द, अभिव्यक्ति का
जितना हो प्रयोग
उतना ही सुंदर
बनते जाता है
साहित्य का सुयोग,
समय संग
व्यक्ति का अभिन्न नाता
दायित्व अंग
समय संग जो निभाता,
रचता वही नव इतिहास
परंपरा के जो अनुयायी
बने रहते समय खास,
लाइक और टिप्पणी ललक
हद से जब जाए छलक
असमान्यता तब जाए झलक
लेखन आ जाए हलक
विचारिए
लेखन आशीष मिला
लेखन को संवारिए,
यही दायित्व है
निज व्यक्तित्व है
नयापन लेखन में पुकारिए,
इस लेखन साधना के
हैं विभिन्न योगी
नित करते रचनाएं
बन अपना ही प्रतियोगी
बिना किसी चाह
बिना किसी छांह
रचते जाते हैं
जो लगा है सत्य
उसीको गाते हैं,
इसकी रचना, उसकी लाईक
उसकी रचना, इसकी लाईक
लेनदेन साहित्य नहीं
लेखन नहीं मंच और माइक,
लेखन साधना है कीजिए
नए शब्द, भाव दीजिए
पुष्प खिलेगा
उडें सुगंध
तितली, भौंरे लपकते
करें पुष्प पर अपना प्रबंध।
धीरेन्द्र सिंह
29.05.2025
10.53