हम नयन के कोर में
देख लेते हैं
झिलमिलाता कहन
करता आलोकित गगन
शांत, सौम्य तकती रहती
आकांक्षाएं
रंगते, गढ़ते अपना चमन,
हल्की उजियारी सी आभा
और कोमल कुहासा
उड़ रहे डैने पसारे
डाल का तो हो इशारा,
लचकती है या रही झूम
कुहासा बाधित करे
कोशिशें अपने में मगन,
मौसम बदलता भाव है
कल्पना की छांव है
मन की एक लंबी सड़क
दौड़ती, मुड़ती, उबड़-खाबड़
सब नयन है देख रहा
और कुहासा
ढाँप लेता दृश्य स्पष्ट
पर रुकी ना दृष्टि
है शोधती अभिनव डाल
मन से मन का हालचाल
पूर्णता के लिए करता चयन।
धीरेन्द्र सिंह
15.04.2025
18.02
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें