लेखन कितना क्षुब्ध हो गया
चाहे हरदम खुश इठलाने को
लाईक, टिप्पणियों के अधीन
सर्जना लगे सुप्त बिछ जाने को
रचनाकार सशक्त सजीव संजीव
रचना मन अंगना खिल जाने को
मिलते रहते पाठक और प्रशंसक
रचना गुणवत्ता ओर खींच जाने को
सर्जन का है कर्म-धर्म अभिव्यक्ति
लेखन का स्वभाव मन छू जाने को
पाठक प्रशंसक के अधीन यदि लेखन
प्रथम संकेत है लेखन चुक जाने को
एक विचार हो एक प्रवाह हो लेखक
है कर्म निरंतर लेखन जग जाने को
एक चुम्बक है लेखन सबको ले खींच
लाईक, कमेंट्स में क्यों उलझ जाने को।
धीरेन्द्र सिंह
07.06.2025
05.39