सोमवार, 14 अप्रैल 2025

प्रणय

 कौंध जाती नयन पुतली

हृदय में गिरी बिजली

क्या नई यह तान है

या प्रणय निज गान है


उभर आती चाँद सी 

शगुन की याद सी

उदित सूरज सम्मान है

या प्रणय अभिमान है


प्यार कब है बोलता

भाव हृदय बस डोलता

इश्क भोला नादान है

या प्रणय विज्ञान है


आप कहती पर अबोल

चेहरा देता भेद खोल

यह लहर मनधाम है

या प्रणय बस नाम है।


धीरेन्द्र सिंह

14.04.2025

20.58



खूंटा और व्यक्ति

 मन में हैं कितनी

स्वीकृति, अस्वीकृतियाँ और

अभिव्यक्ति भी जीवन में

खूंटों से बंधी है,

व्यक्ति

खूंटे की रस्सी जितनी

नाप सकता है दूरी

यह दुनियादारी है

नहीं मजबूरी,


मजबूर तो बंधनहीन हैं

जिन्हें नहीं मिलते

खूंटे की रस्सी से

बढ़नेवाले आगे,

कोल्हू के बैल की तरह

गतिशीलता देती है

प्रगति की अनुभूति

कौन करे विश्लेषण

इस क्षद्म नीति का?


अकुलाए, बौराए

घूमते गोल-गोल

अपनी परिधि में

स्थापित करते तादात्म्य

उभरती घास से,

टपकती बूंद से,

अपने ही कदमों के

रचित इंद्रधनुष से,

मौलिकता

गढ़ने के बजाय

मान लेना

अब का चलन है,


नही उखाड़ सकते खूंटा

यदि किए प्रयास तो

बोल उठेंगे लोग

संस्कार है

संस्कृति है

सभ्यता है

जिसका आधार है खूंटा,

खूंटे से अलग सोचना

उखड़ जाना है

खूंटे की रस्सी तक

दुनिया, जमाना है।


धीरेन्द्र सिंह

14.04.2025

16.06