सत्य सम्पूर्ण अपना जब जतलाया रूठ गईं
एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गईं
मुझे ना पसंद कुछ छिपाना कुछ जताना
पारदर्शी ही होता है जिसे कहते हैं दीवाना
यह पारंपरिक प्रथा है नहीं है बात कोई नई
एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई
प्यार पर गौर करें तो उसका कोई तौर नही
यार को भ्रम में रखें यह शराफत दौर नहीं
प्यार आध्यात्म का रूप है भक्ति रूप कई
एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई
पारदर्शिता ही प्यार का है सर्वप्रमुख रीत
प्यार तुमसे किया तुम में ही लिपटा गीत
मेरी बातों पर तुम्हारा “उफ्फ़” प्रतीक कई
एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई
कहा गया है नारी को समझना आसान नहीं
कल मेरी रचना को लाइक कर चली कहीं
इतने से अलमस्त हृदय निकसित भाव कई
एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई।
धीरेन्द्र सिंह
30.03.2025
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