रविवार, 30 मार्च 2025

वह

 सत्य सम्पूर्ण अपना जब जतलाया रूठ गईं

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गईं


मुझे ना पसंद कुछ छिपाना कुछ जताना

पारदर्शी ही होता है जिसे कहते हैं दीवाना

यह पारंपरिक प्रथा है नहीं है बात कोई नई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


प्यार पर गौर करें तो उसका कोई तौर नही 

यार को भ्रम में रखें यह शराफत दौर नहीं

प्यार आध्यात्म का रूप है भक्ति रूप कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


पारदर्शिता ही प्यार का है सर्वप्रमुख रीत

प्यार तुमसे किया तुम में ही लिपटा गीत

मेरी बातों पर तुम्हारा “उफ्फ़” प्रतीक कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


कहा गया है नारी को समझना आसान नहीं

कल मेरी रचना को लाइक कर चली कहीं

इतने से अलमस्त हृदय निकसित भाव कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई।


धीरेन्द्र सिंह

30.03.2025

20.43