दिल दहलता जब संशय है
कितना गहरा क्या संचय है
अपने जपने का सिलसिला
इसी में युग को है दुख मिला
लोगों का लक्ष्य तो धनंजय है
कितना गहरा क्या संचय है
कष्ट अपनों का है असहनीय
राह पथरीली तो भी वंदनीय
दर्द ज्यादा पर मन संजय है
कितना गहरा क्या संचय है
दिल फट पड़ने की परिस्थितियां
संस्कार भी और निर्मित रीतियाँ
जूझता बूझता लड़ता सुसंशय है
कितना गहरा क्या संचय है।
धीरेन्द्र सिंह
05.02.2025
19.33