रविवार, 17 दिसंबर 2023

लहक चू गयी

 पहुंचा जब गले तक, महक छू गयी

लगा महुआ है टपका, लहक चू गयी


देह के धामों में ऋचाएं हैं अनगिनत

मातृत्व से प्रेयसी तक सब हैं नियत

पढ़ना चाहा कुछ गुह्य कुछ धू हो गयी

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी


कलश देह में जल जीवन है सम्हाले

प्यार के भी होते हैं जलपान निवाले

बूंदों की कामना में ललक भू भयी

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी


अंतर्चेतना का ज्ञान सजग मान है नारी

यह ज्ञान सभी को पर निभाव में दुश्वारी

सहज समर्पण किया तो त्वरित तू भई

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी।


धीरेन्द्र सिंह


17.12.2023

13.25