शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

चाँद चौखट पर बैठा

चाँद चौखट पर बैठा चांदनी बिखर गयी
आपके चहरे को छूकर चांदनी निखर गयी
रात्रि ने करवट बदलकर आपसे क्या बात की
चंद लम्हे में ही जुल्फें आपकी बिखर गयी

आसमान में सितारे पलकें झपकाते पुकारे
ओ निशा क्या बात है क्यों तुम सिहर गयी
मेरी पलकों ने झपकने से जो किया इनकार
चन्दा की सुन फुसफुसाहटें चांदनी बिफर गयी

एक ऐसा द्वन्द जिसकी ना थी कभी कामना
मेरे और चंदा के बीच कैसे यह छिड़ गयी
आपका सौंदर्य भी दे रहा था चुनौतियां खिलकर
प्यार की प्रांजलता पशोपेश में सिफर भई

चाँदनी को कर प्रखर चंदा बरबस निहारे
आसमान भी झुक गया सितारों की बन गयी
बदलियाँ भी मेरी पलकों पर लगी गुजरने
आप तो सोयी हुयी थीं रात पूरी बहक गयी.
 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.