शनिवार, 10 जून 2017

तीन बजे रात से तुम्हें सोचते रहा
जैसे नमाज़ी सेहरी में मशगूल
ईश्वर प्यार ही तो है, सब करें
चांद की ख्वाहिश लिए उसूल

भोर की मस्जिद की दिखें हलचलें
नमाज़ी की नमाज़ हो रही कुबूल
भोर की हलचलें आरम्भ हो चलीं
सेहरी मिलने इफ्तारी को दे रही तूल

दिल में आया तुम्हारा खयाल उठ गया
भोर पाकीज़गी के शोर में मशगूल
तुम भी किसी दुआ हेतु एहसासी सजदा
और रहमत हो मिल जाओ जैसे रसूल।