शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

चुइंग गम

 चुइंग गम की तरह

तुम्हें चुभलाता मस्तिष्क

कभी नही कहता 

है इश्क़

और

तुम भी भला कैसे बोलो

है मर्यादा का घूंघट,


मन मनन करता

छनन छनन करता

कल्पनाएं करता

चुभलाता है चुइंग गम

और

तुम घुमड़ती बदली

ना तब ना अब बदली,


क्या भारतीय प्यार

नहीं लिए आधार

वात्स्यायन की खोज

खजुराहो बिन दोष

कोणार्क पुरजोश

हैं सांस्कृतिक धरोहर ?


भारतीय संस्कृति और संस्कार

नृत्यमय राग विभिन्न प्यार

दैहिक कम अधिक आत्मिक उद्गार

रहती जिंदगी संवार

रहित विभिन्न व्यभिचार

यही हमारा देश

यही शांति मुक्ति द्वार,


सहमत हो तो चलो

नई रीति राग जगाएं

प्यार नवपरिभाषित बनाएं

मुखरित हों बिन विभेद

बस और नहीं

चुइंग गम चबाएं।


धीरेन्द्र सिंह

02.11.2024

11.13




उलझी हिंदी

 नाटक खेल तमाशा है

उलझी हिंदी भाषा है


नए शब्द नहीं भाए

अंग्रेजी शब्द लिख जाएं

हिंदी से ना नाता है

उलझी हिंदी भाषा है


किसको क्या है पड़ी

मुरझाती फसल खड़ी

सब बिक जाता है

उलझी हिंदी भाषा है


झूठे मंच झूठा सम्मान

हिंदी में कहां अभिमान

सब अंग्रेजी में भाता है

उलझी हिंदी भाषा है



शब्द नहीं अभिव्यक्ति कहां

नवीनता बिन भाषा जहां

हिंदी में बढ़ती हताशा है

उलझी हिंदी भाषा है।


धीरेन्द्र सिंह

02.11.2024

08.1


स्वार्थी

 गुजरी कई ढीठ बता

अपनी चाह को मिटा


पुरुष-नारी युग धर्म

वासना ही नहीं कर्म

रौंदी कामना पैर लिपटा

अपनी चाह को मिटा


जितनी मिली सर्जक थी

बातें खूब बौद्धिक की

चुनी बातें ले चिमटा

अपनी चाह को मिटा


सब सोचें वह चालाक

मेरा कर्म सिद्ध चार्वाक

कांच समझ फेंके ईंटा

अपनी चाह को मिटा।


धीरेन्द्र सिंह

01.11.2024

16.22