शुक्रवार, 26 मई 2017

आज निशा निमंत्रण है
हृदय भी किए प्रण है
चांदनीं में डूब नहाए मन
स्पंदनों से गूंजे हर कण-कण है।

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आज निशा निमंत्रण है
हृदय का मुक्त भ्रमण है
चांदनीं बिखरी सकुचाई सी
चंदा कहे क्या रमण है।

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आज निशा निमंत्रण है
हृदय करे कुछ संग्रहण है
चांदनीं बिखरी जुल्फों सी
मुग्धित हर पल - क्षण है।

गुरुवार, 25 मई 2017

मन का आचमन हुआ, अचंभित है मन
सब कुछ मिलाकर मन को तुम कर दिया
पलकों में स्वप्न हो अधीर कर रहा विचरण
अपनी हो कोई एक राह मन ढूंढ ला दिया

जेठ की तपिश सा लगे तुम बिन होना तो
सावन की रिमझिम सा है तुमने भींगा दिया
बूंदों सा भाव टपटपाते मन में थिरक रहे
ओरी से गिरते जल सा निरर्थक बहा दिया

मिलने का यह मिलन सदियों का है चलन
जलन सीने में हो रही यह क्या जला दिया
कभी बहकने लगे मन तो हो जाए अनमन
घनघन कारे बदरा संग जिया को उड़ा दिया

सब खो गया तुम में, मैं से ढला हम में
हमने हिया में सप्तरंगी सा सजा दिया
भविष्य के डगर के हैं हम गुप्त से राही
कभी उम्मीद, कभी भय तो जय को जगा दिया।

सोमवार, 15 मई 2017


 प्यार भरी दे रहीं धमकियां
कुछ तो न किया क्यों मियां

उनके तसव्वुर में बोल गया
छुपाया है जो हमारे दरमियाँ

बदगुमानी न बदमिजाजी है
हर्फ़ समझें न बना दें सुर्खियां

बेमुरव्वत कब रही मोहब्बत
तलाशे मन क्यों एहसासी सर्दियां

ना तराशो ना अब और लावण्यमयी
बुत बना दोगी हँसेगी सखियां।