भावनाएं मेरी नव पताका लहराती बहुरंगी है
प्यार हमारी दुनियादारी कहलाती अतिरंगी है
नयन-नयन बात नहीं शब्द-शब्द संवाद गहे
बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है
जिस दिल में बहे बिनभय संवेदना अनुरागी
मिल खिल कर कहें शब्द भाव सब समभागी
उसी हृदय से मिल हृदय कहे हम हुड़दंगी हैं
बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है
क्या कर लेंगी क्या हर लेंगी बुद्धिजनित बातें
मन ही मन हो दौड़ बने तब आत्मजनित नाते
संवेदना की सरणी में नौकाविहार आत्मरंगी है
बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है
कुछ तो कहीं तंतु है नहीं है किंतु-परंतु
तंतु-तंतु सह बिंदु है वहीं है जीव-जीवन्तु
सरगर्मी से हर कर्मी जीवन रचता प्रीतिसंगी है
बौद्धिकता से विलग रहे मनोभाव मनसंगी है।
धीरेन्द्र सिंह
23.01.2025
15.34