सोमवार, 18 अप्रैल 2011

प्रतिक्रियाएं आपकी

प्रतिक्रियाएं आपकी प्रतीक हो गईं
लेखनी मेरी भी अभिभूत हो गई
शब्द-शब्द स्नेह की हो रही बारिश
दिल की दिल से करतूत हो गई

प्रतिक्रयाएं आपकी नभ का विस्तार ले
स्पंदनों के बंधनों की सबूत हो गई
कामनाएं पुलकित हो सजाएं कवितावली
प्रतिक्रयाएं मन्नतों की भभूत हो गई

मन कुलांचे मारता लिख रहा है
भावनाएं अंतर्मन की दूत हो गईं
प्रतिक्रियाएं मिल रहीं लगकर गले
लेखनी की प्रखर मस्तूल हो गईं.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.