सोमवार, 28 अप्रैल 2025

क्यों है

 समझ ले तुमको कोई 

यह जरूरी क्यों है

लोग देतें रहें सम्मान

यह मजबूरी क्यों है


हृदय संवेदनाएं करें बातें

बातों की जी हजूरी क्यों है

खुद को ढाल लिया खुद में

कहे कोई मगरूरी क्यों है


हर जगह है अकेलापन

भीड़ जरूरी क्यों है

सुगंध तुमसा न मिले

खुश्बू अन्य निगोड़ी क्यों है


सूर्य सा तपकर भी

आग तिजोरी क्यों है

भावनाओं को समझ ना सकें

शब्द मंजूरी क्यों है।


धीरेन्द्र सिंह

28.04.2025

19.48



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